Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 33 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 33/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कवष ऐलूषः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    अधि॑ पुत्रोपमश्रवो॒ नपा॑न्मित्रातिथेरिहि । पि॒तुष्टे॑ अस्मि वन्दि॒ता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अधि॑ । पु॒त्र॒ । उ॒प॒म॒ऽश्र॒वः॒ । नपा॑त् । मि॒त्र॒ऽअ॒ति॒थेः॒ । इ॒हि॒ । पि॒तुः । ते॒ । अ॒स्मि॒ । व॒न्दि॒ता ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अधि पुत्रोपमश्रवो नपान्मित्रातिथेरिहि । पितुष्टे अस्मि वन्दिता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अधि । पुत्र । उपमऽश्रवः । नपात् । मित्रऽअतिथेः । इहि । पितुः । ते । अस्मि । वन्दिता ॥ १०.३३.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 33; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 2; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (पुत्र) बहुत सी प्रजाओं के रक्षक ! हे (उपम-श्रवः) अति उत्तम ज्ञान के देने हारे गुरो ! हे (मित्रातिथेः नपात्) मित्र, स्नेही और अतिथिवत् स्वल्प काल के लिये तेरे गृह पर आने वाले को नीचे न गिरने देने हारे तू (अधि इहि) हम पर अधिवक्ता होकर विराज। (ते पितुः) पिता के समान तुझ पालक का मैं (वन्दिता अस्मि) अभिवादन, स्तुति, प्रार्थना आदि करने वाला हूं। आचार्य पक्ष में जिसके (रथे) रमणीय उपदेश में मुझ को (तिस्रः हरितः) तीनों वेद वाणियाँ साधु मार्ग से ले जाती हैं उस (सहिस्र-दक्षिणे) हजारों को दक्षिण दिशा में बैठा कर उपदेश करने वाले उस गुरु के अधीन मैं (स्तत्रै) वेद का अध्ययन करूं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कवष ऐलूष ऋषिः॥ देवताः- १ विश्वे देवाः। २,३ इन्द्रः। ४, ५ कुरुश्रवणस्य त्रासदस्यवस्य दानस्तुतिः ६-९ उपमश्र व मित्रातिथिपुत्राः॥ छन्दः– १ त्रिष्टुप् २ निचृद् बृहती। ३ भुरिग् बृहती। ४–७, ९ गायत्री। ८ पादनिचृद् गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top