ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 66/ मन्त्र 3
इन्द्रो॒ वसु॑भि॒: परि॑ पातु नो॒ गय॑मादि॒त्यैर्नो॒ अदि॑ति॒: शर्म॑ यच्छतु । रु॒द्रो रु॒द्रेभि॑र्दे॒वो मृ॑ळयाति न॒स्त्वष्टा॑ नो॒ ग्नाभि॑: सुवि॒ताय॑ जिन्वतु ॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्रः॑ । वसु॑ऽभिः । परि॑ । पा॒तु॒ । नः॒ । गय॑म् । आ॒दि॒त्यैः । नः॒ । अदि॑तिः । शर्म॑ । य॒च्छ॒तु॒ । रु॒द्रः । रु॒द्रेभिः॑ । दे॒वः । मृ॒ळ॒या॒ति॒ । नः॒ । त्वष्टा॑ । नः॒ । ग्नाभिः॑ । सु॒वि॒ताय॑ । जि॒न्व॒तु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रो वसुभि: परि पातु नो गयमादित्यैर्नो अदिति: शर्म यच्छतु । रुद्रो रुद्रेभिर्देवो मृळयाति नस्त्वष्टा नो ग्नाभि: सुविताय जिन्वतु ॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्रः । वसुऽभिः । परि । पातु । नः । गयम् । आदित्यैः । नः । अदितिः । शर्म । यच्छतु । रुद्रः । रुद्रेभिः । देवः । मृळयाति । नः । त्वष्टा । नः । ग्नाभिः । सुविताय । जिन्वतु ॥ १०.६६.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 66; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 12; मन्त्र » 3
विषय - तेजस्वी राजा का कर्त्तव्य, प्रजा का पालन।
भावार्थ -
(इन्द्रः नः वसुभिः नः गयम् परि पातु) ऐश्वर्यवान्, ऐश्वर्य देने वाला हमें नाना ऐश्वर्यों और राष्ट्र में बसे नाना जनों से हमारे गृह और प्राण की सब ओर से रक्षा करे। (अदितिः) सूर्य (आदित्यैः) मासों, ऋतुओं से और भूमि माता, भूमिवासी जनों वा वा भूमि के रक्षकों द्वारा (नः शर्म यच्छतु) हमें सुख प्रदान करे। (रुद्रः) दुष्टों को लाने और सब के दुःखों को दूर करने वाला, (देवः) तेजस्वी पुरुष (रुद्रेभिः नः मृडयाति) उसी प्रकार के उत्तम पुरुषों वा पीड़ा नाशक पदार्थों द्वारा हमें सुखी करे, हम पर कृपा करे। (त्वष्टा) सूर्यवत् तेजस्वी पुरुष (नः) हमें (सुविताय) सुख प्राप्ति के लिये, (ग्नाभिः) वाणियों से (जिन्वतु) प्रसन्न करे।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषि वसुकर्णो वासुक्रः॥ विश्वेदेवा देवताः। छन्द:– १, ३, ५–७ जगती। २, १०, १२, १३ निचृज्जगती। ४, ८, ११ विराड् जगती। ९ पाद-निचृज्जगती। १४ आर्ची स्वराड् जगती। १५ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चदशर्चं सूक्तम्॥
इस भाष्य को एडिट करें