ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 97/ मन्त्र 1
या ओष॑धी॒: पूर्वा॑ जा॒ता दे॒वेभ्य॑स्त्रियु॒गं पु॒रा । मनै॒ नु ब॒भ्रूणा॑म॒हं श॒तं धामा॑नि स॒प्त च॑ ॥
स्वर सहित पद पाठयाः । ओष॑धीः । पूर्वा॑ । जा॒ता । दे॒वेभ्यः॑ । त्रि॒ऽयु॒गम् । पु॒रा । मनै॑ । नु । ब॒भ्रूणा॑म् । अ॒हम् । श॒तम् । धामा॑नि । स॒प्त । च॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
या ओषधी: पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा । मनै नु बभ्रूणामहं शतं धामानि सप्त च ॥
स्वर रहित पद पाठयाः । ओषधीः । पूर्वा । जाता । देवेभ्यः । त्रिऽयुगम् । पुरा । मनै । नु । बभ्रूणाम् । अहम् । शतम् । धामानि । सप्त । च ॥ १०.९७.१
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 97; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 8; मन्त्र » 1
विषय - ओषधि-स्तुति। तीन युगों, तीनों ऋतुओं में उत्पन्न ओषधियों के ज्ञान का उपदेश। उन देह के ७०० मर्मानुसार उनके ७०० तेज।
भावार्थ -
(याः) जो (ओषधीः) ओषधियां (पूर्वाः) अनेक रूप, एवं जीवों को पालने में समर्थ रस आदि से पूर्ण (देवेभ्यः) किरणों द्वारा मनुष्यों के हितार्थ (पुरा) पहिले ही (त्रि-युगम्) तीनों ऋतुओं में (जाताः) उत्पन्न होती हैं उन (बभ्रूणाम्) पक्व होकर पीली पड़ी, देह की पोषक उन ओषधियों का मैं (मनै नु) अवश्य ज्ञान प्राप्त करूं। और उनके (शतं धामानि) सौ तेजों और (सप्त धामानि) सातों धारण करने योग्य सामर्थ्यों को (मनै) जानूं। (शतं०) अथवा—धारक पोषक ओषधियों के (सप्त शतं धामानि) ७०० धाम अर्थात् मनुष्य देह में विद्यमान ७०० वे मर्म जानूं जहां इन ओषधियों के अद्भुत २ प्रभाव प्रकट होते हैं।
टिप्पणी -
सप्तशतं पुरुषस्य मर्मणां, तेषु एना दधातीति। निरु० ९। २८॥
तीन युग तीन ऋतु हैं। शत धाम सौ वर्ष हैं। सात धाम सात देहगत प्राण हैं। अथवा सप्त, शत, ७०० मर्मस्थान हैं जिन पर ओषधियों का प्रयोग होता है।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः—१—२३ भिषगाथर्वणः। देवता—ओषधीस्तुतिः॥ छन्दः –१, २, ४—७, ११, १७ अनुष्टुप्। ३, ९, १२, २२, २३ निचृदनुष्टुप् ॥ ८, १०, १३—१६, १८—२१ विराडनुष्टुप्॥ त्रयोविंशर्चं सूक्तम्॥
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