ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 39/ मन्त्र 4
ना॒वेव॑ नः पारयतं यु॒गेव॒ नभ्ये॑व न उप॒धीव॑ प्र॒धीव॑। श्वाने॑व नो॒ अरि॑षण्या त॒नूनां॒ खृग॑लेव वि॒स्रसः॑ पातम॒स्मान्॥
स्वर सहित पद पाठना॒वाऽइ॑व । नः॒ । पा॒र॒य॒त॒म् । यु॒गाऽइ॑व । नभ्या॑ऽइव । नः॒ । उ॒प॒धी इ॒वेत्यु॑प॒धीऽइ॑व । प्र॒धी इ॒वेति॑ प्र॒धीऽइ॑व । श्वाना॑ऽइव । नः॒ । अरि॑षण्या । त॒नूना॑म् खृग॑लाऽइव । वि॒ऽस्रसः॑ । पा॒त॒म् । अ॒स्मान् ॥
स्वर रहित मन्त्र
नावेव नः पारयतं युगेव नभ्येव न उपधीव प्रधीव। श्वानेव नो अरिषण्या तनूनां खृगलेव विस्रसः पातमस्मान्॥
स्वर रहित पद पाठनावाऽइव। नः। पारयतम्। युगाऽइव। नभ्याऽइव। नः। उपधी इवेत्युपधीऽइव। प्रधी इवेति प्रधीऽइव। श्वानाऽइव। नः। अरिषण्या। तनूनाम् खृगलाऽइव। विऽस्रसः। पातम्। अस्मान्॥
ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 39; मन्त्र » 4
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
अष्टक » 2; अध्याय » 8; वर्ग » 4; मन्त्र » 4
विषय - विद्वानों वीरों और उत्तम स्त्री पुरुषों एवं वर वधू के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
हे स्त्री पुरुषो ! हे वर-वधुओ ! वा राजा मन्त्री ! आप दोनों मिलकर ( नावा इव ) दो नावों के समान ( नः ) हमारे दोनों कुलों को ( पारयतम् ) दुःख और कर्त्तव्य सागर से पार करो ( युगा इव ) रथा में लगे जूओं के समान या जूओं में जुड़े अश्वों के समान, ( नभ्या इव ) रथ चक्र के केन्द्र या नाभि में लगे दण्डों के समान, ( उपधी इव ) रथ के बीच के भाग में भार के सहने वाले, बगलों में लगे दो दण्डों के समान और ( प्रधी इव ) रथ के ऊपर लगे लोहे के दो हालों के समान ( नः ) हमें ( पारयतम् ) संकटों से पार करो । और दोनों ( श्वाना इव ) दांये बांये चलने वाले दो कुत्तों के समान रक्षक रहकर ( तनूनां ) हमारे शरीरों का ( अरिषण्यौ ) कभी हिंसन न करते हुए ( खृगला इव ) कन्धों पर लगे कवचों के समान ( नः ) हमारे शरीरों को नाश न होने देते हुए ( अस्मान् ) हमें ( विस्रसः ) विविध प्रकार के नाशकारी विपदा से ( पातम् ) बचाओ ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - गृत्समद ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः- १ निचृत् त्रिष्टुप् । ३ विराट् त्रिष्टुप। ४, ७, ८ त्रिष्टुप। २ भुरिक् पङ्क्तिः। ५, ६ स्वराट् पङ्क्तिः॥ अष्टर्चं सूक्तम्॥
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