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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 42/ मन्त्र 9
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वां सु॒तस्य॑ पी॒तये॑ प्र॒त्नमि॑न्द्र हवामहे। कु॒शि॒कासो॑ अव॒स्यवः॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । सु॒तस्य॑ । पी॒तये॑ । प्र॒त्नम् । इ॒न्द्र॒ । ह॒वा॒म॒हे॒ । कु॒शि॒कासः॑ । अ॒व॒स्यवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां सुतस्य पीतये प्रत्नमिन्द्र हवामहे। कुशिकासो अवस्यवः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम्। सुतस्य। पीतये। प्रत्नम्। इन्द्र। हवामहे। कुशिकासः। अवस्यवः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 42; मन्त्र » 9
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् ! विद्वन् ! हम (कुशिकासः) सार को ग्रहण करने में कुशल (अवस्यवः) तेरे अधीन रक्षा, व्रत और प्रजा के पालन और ज्ञान की कामना करते हुए (सुतस्य पीतये) उत्पन्न पुत्र वा शिष्य के पालन और पुत्रवत् प्रजायुक्त राष्ट्र के रक्षण और ऐश्वर्य के उपभोग के लिये (प्रत्नं त्वां) पुरातन या प्रथमतः अनुभव-वृद्ध तुझको हम लोग (हवामहे) बुलाते हैं। इति षष्ठो वर्गः॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः- १, ४-७ गायत्री। २, ३, ८, ९ निचृद्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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