Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 47 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 47/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    म॒रुत्वाँ॑ इन्द्र वृष॒भो रणा॑य॒ पिबा॒ सोम॑मनुष्व॒धं मदा॑य। आ सि॑ञ्चस्व ज॒ठरे॒ मध्व॑ ऊ॒र्मिं त्वं राजा॑सि प्र॒दिवः॑ सु॒ताना॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒रुत्वा॑न् । इ॒न्द्र॒ । वृ॒ष॒भः । रणा॑य । पिब॑ । सोम॑म् । अ॒नु॒ऽस्व॒धम् । मदा॑य । आ । सि॒ञ्च॒स्व॒ । ज॒ठरे॑ । मध्वः॑ । ऊ॒र्मिम् । त्वम् । राजा॑ । अ॒सि॒ । प्र॒ऽदिवः॑ । सु॒ताना॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मरुत्वाँ इन्द्र वृषभो रणाय पिबा सोममनुष्वधं मदाय। आ सिञ्चस्व जठरे मध्व ऊर्मिं त्वं राजासि प्रदिवः सुतानाम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मरुत्वान्। इन्द्र। वृषभः। रणाय। पिब। सोमम्। अनुऽस्वधम्। मदाय। आ। सिञ्चस्व। जठरे। मध्वः। ऊर्मिम्। त्वम्। राजा। असि। प्रऽदिवः। सुतानाम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 47; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 11; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन्! राजन् ! शत्रुहन्तः सेनापते ! तू (मरुत्वान्) शत्रुओं को मारने में समर्थ पुरुषों का स्वामी और उत्तम मनुष्य प्रजाओं का राजा, (वृषभः) सभा द्वारा अग्रणी रूप से चुने जाने योग्य, बलवान्, सुखों, ऐश्वर्यों और शस्त्रों को मेघ के समान शत्रुओं पर वर्षण करने वाला होकर तू (अनु-स्वधम्) अपनी धारण, पालन पोषण करने की शक्ति, अन्नादि ऐश्वर्य के अनुसार ही (रणाय) संग्राम के विजय के लिये और (मदाय) हर्ष, आनन्द लाभ करने को भी (सोमम्) राष्ट्र की प्रजा को पुत्र के समान और राष्ट्र के ऐश्वर्य और जल अन्नादि को धन के समान (पिब) पालन कर उपभोग कर। और (जठरे मध्वः ऊर्मिम्) पेट में मधुर अन्न वा जल की बड़ी मात्रा के समान तू भी अपने (जठरे) अधीन सुरक्षित राष्ट्र में (मध्वः ऊर्मिम्) जल की धारा और अन्न की अधिक मात्रा को (आसिञ्चस्व) सर्वत्र, सब ओर सींच, प्रवाहित कर। (त्वं) तू ही (प्रदिवः) सब दिनों (सुतानां) उत्पन्न प्रजाओं वा अभिषिक्त पदाधिकारियों के बीच में भी सबसे उत्कृष्ट (राजा असि) राजा है, सबसे अधिक प्रकाशमान है। आचार्य पक्ष में—शिष्य गण ‘मरुत्’ हैं। रमणीय, उत्तम आनन्द ही ‘रण, मद’ है। शेष स्पष्ट है। (३) परमेश्वर पक्ष में—सोम जीव। (४) अध्यात्म में—सोम परमेश्वर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः– १-३ निचृत्त्रिष्टुप्। ४ त्रिष्टुप्। ५ विराट् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top