ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 48/ मन्त्र 1
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - इन्द्र:
छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
स॒द्यो ह॑ जा॒तो वृ॑ष॒भः क॒नीनः॒ प्रभ॑र्तुमाव॒दन्ध॑सः सु॒तस्य॑। सा॒धोः पि॑ब प्रतिका॒मं यथा॑ ते॒ रसा॑शिरः प्रथ॒मं सो॒म्यस्य॑॥
स्वर सहित पद पाठस॒द्यः । ह॒ । ज॒तः । वृ॒ष॒भः । क॒नीनः॑ । प्रऽभ॑र्तुम् । आ॒व॒त् । अन्ध॑सः । सु॒तस्य॑ । सा॒धोः । पि॒ब॒ । प्र॒ति॒ऽका॒मम् । यथा॑ । ते॒ । रस॑ऽआशिरः । प्र॒थ॒मम् । सो॒म्यस्य॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
सद्यो ह जातो वृषभः कनीनः प्रभर्तुमावदन्धसः सुतस्य। साधोः पिब प्रतिकामं यथा ते रसाशिरः प्रथमं सोम्यस्य॥
स्वर रहित पद पाठसद्यः। ह। जातः। वृषभः। कनीनः। प्रऽभर्तुम्। आवत्। अन्धसः। सुतस्य। साधोः। पिब। प्रतिऽकामम्। यथा। ते। रसऽआशिरः। प्रथमम्। सोम्यस्य॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 48; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
अष्टक » 3; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
विषय - वनस्पत्ति के पालक मेघवत् राजा के कर्त्तव्य।
भावार्थ -
जिस प्रकार (कनीनः) दीप्तिमान् (वृषभः) वर्षणशील सूर्य (जातः) प्रकट होकर (सुतस्य अन्धसः) उत्पन्न हुए अन्न आदि वनस्पतिगण का ( प्रभर्तुम् आवत्) उत्तम रीति से भरण पोषण करने में समर्थ होता है, वह (रसाशिरः सोम्यस्य साधोः पिबति) नाना जलों से अभिषिक्त ओषधिगण के हितकारी, सर्वोत्तम, सर्व कार्यसाधक जल को रश्मियों द्वारा पान करता है उसी प्रकार राजन् ! तू भी (सद्यः) शीघ्र ही वा (साद्यः) सद् संसद्, परिषदादि में श्रेष्ठ (जातः) सब गुणों में सम्पन्न होकर (वृषभः) बलवान् (कनीनः) कान्तिमान्, तेजस्वी,सबके कामना करने योग्य होकर (सुतस्य) उत्पन्न पुत्र के समान प्रजागण को (प्रभर्तुम् ) अच्छी प्रकार भरण पोषण करने के लिये (अन्धसःआवत्) अन्न आदि पदार्थों को सुरक्षित करे और प्राप्त करे। और (प्रति-धर्म) प्रत्येक उत्तम अभिलाषा के अनुकूल (सोम्यस्य) ऐश्वर्ययुक्त राष्ट्र के हितकारी (साधोः) सन्मार्गस्थित, कार्यसाधक, उत्तम (रसाशिरः) बल को धारण करने वाले या उत्तम जलादि के उपभोक्ता, राष्ट्र की (प्रथमम् ) सबसे प्रथम (पिब) पालना कर (यथा ते) जिससे तेरा ही उस पर यथेष्ट स्वामित्व हो। पक्षान्तर में—मनुष्य उत्तम वनस्पतियों के उत्तम रसादि का उपभोक्ता हो।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता ॥ छन्द:–१, २ निचृत्त्रिष्टुप। ३, ४ त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् पंक्तिः॥
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