ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 60/ मन्त्र 5
ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा
देवता - ऋभवः
छन्दः - निचृज्जगती
स्वरः - निषादः
इन्द्र॑ ऋ॒भुभि॒र्वाज॑वद्भिः॒ समु॑क्षितं सु॒तं सोम॒मा वृ॑षस्वा॒ गभ॑स्त्योः। धि॒येषि॒तो म॑घवन्दा॒शुषो॑ गृ॒हे सौ॑धन्व॒नेभिः॑ स॒ह म॑त्स्वा॒ नृभिः॑॥
स्वर सहित पद पाठइन्द्र॑ । ऋ॒भुऽभिः॑ । वाज॑वत्ऽभिः । सम्ऽउ॑क्षितम् । सु॒तम् । सोम॑म् । आ । वृ॒ष॒स्व॒ । गभ॑स्त्योः । धि॒या । इ॒षि॒तः । म॒घ॒व॒न् । दा॒शुषः॑ । गृ॒हे । सौ॒ध॒न्व॒नेभिः॑ । स॒ह । म॒त्स्व॒ । नृऽभिः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्र ऋभुभिर्वाजवद्भिः समुक्षितं सुतं सोममा वृषस्वा गभस्त्योः। धियेषितो मघवन्दाशुषो गृहे सौधन्वनेभिः सह मत्स्वा नृभिः॥
स्वर रहित पद पाठइन्द्र। ऋभुऽभिः। वाजवत्ऽभिः। सम्ऽउक्षितम्। सुतम्। सोमम्। आ। वृषस्व। गभस्त्योः। धिया। इषितः। मघवन्। दाशुषः। गृहे। सौधन्वनेभिः। सह। मत्स्व। नृऽभिः॥
ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 60; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
अष्टक » 3; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 5
विषय - सौधन्वन वीर, इन्द्र ऋभुओं का सम्बन्ध।
भावार्थ -
हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् राजन् ! (ऋभुभिः बाजवद्भिः समुक्षितं सुतं सोमं गभस्त्योः) सूर्य जिस प्रकार वेगवान् प्रकाशमय किरणों से संसिक्त जल को या ओषध्यादि को किरणों द्वारा पुष्ट करता है उसी प्रकार तू (वाजवद्भिः ऋभुभिः) ज्ञानवान् और बलवान् विद्वानों और वीर पुरुषों से (समुक्षितं) अच्छी प्रकार सेचित, परिपोषित और परिपालित (सुतं सोमम्) शासित ऐश्वर्ययुक्त राष्ट्र को (गभस्त्योः) वश करने में समर्थ बाहुओं के बल पर (आवृषस्व) सब प्रकार से परिपुष्ट कर। हे (मघवन्) ऐश्वर्यवन् ! तू (धिया) बुद्धि से (इषितः) प्रेरित होकर (दाशुषः) दानशील करप्रद प्रजा के (गृहे) ग्रहण करने हारे वश करने वाले पद पर स्थित होकर (सौधन्वनेभिः) उत्तम ज्ञान और धनुष आदि शस्त्र बल से सम्पन्न (नृभिः) वीर विद्वान् नेताओं सहित (मत्स्व) आनन्द को लाभ कर।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ ऋभवो देवता॥ छन्दः- १, २, ३ जगती। ४, ५ निचृज्जगती। ६ विराड् जगती। ७ भुरिग्जगती॥ निषादः स्वरः॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥
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