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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 7 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 7/ मन्त्र 1
    ऋषिः - गाथिनो विश्वामित्रः देवता - अग्निः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    प्र य आ॒रुः शि॑तिपृ॒ष्ठस्य॑ धा॒सेरा मा॒तरा॑ विविशुः स॒प्त वाणीः॑। प॒रि॒क्षिता॑ पि॒तरा॒ सं च॑रेते॒ प्र स॑र्स्राते दी॒र्घमायुः॑ प्र॒यक्षे॑॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । ये । आ॒रुः । शि॒ति॒ऽपृ॒ष्ठस्य॑ । धा॒सेः । आ । मा॒तरा॑ । वि॒वि॒शुः॒ । स॒प्त । वाणीः॑ । प॒रि॒ऽक्षिताः॑ । पि॒तरा॑ । सम् । च॒रे॒ते॒ । प्र । स॒र्स्रा॒ते॒ इति॑ । दी॒र्घम् । आयुः॑ । प्र॒ऽयक्षे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र य आरुः शितिपृष्ठस्य धासेरा मातरा विविशुः सप्त वाणीः। परिक्षिता पितरा सं चरेते प्र सर्स्राते दीर्घमायुः प्रयक्षे॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। ये। आरुः। शितिऽपृष्ठस्य। धासेः। आ। मातरा। विविशुः। सप्त। वाणीः। परिऽक्षिताः। पितरा। सम्। चरेते। प्र। सर्स्राते इति। दीर्घम्। आयुः। प्रऽयक्षे॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 7; मन्त्र » 1
    अष्टक » 3; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (धासेः) दुग्धपान करने वाले बालक के (मातरा) माता और पिता दोनों (परिक्षिता) उसके ऊपर और उसके साथ रहने वाले (पितरा) पालक होकर (प्रयक्षे) उत्तम मैत्रीभाव और संगति लाभ करने तथा उत्तम दान प्रतिदान करने के लिये (संचरेते) साथ मिलकर धर्म का आचरण करें। (दीर्घम् आयुः) वे दीर्घ आयु (प्रसर्स्त्राते) प्राप्त करते हैं। परन्तु जो लोग (शितिपृष्ठस्य) सूक्ष्म विषयों पर भी प्रश्नशील और (धासेः) ज्ञान धारण करने या ज्ञान-रस का पान करने वाले विद्वान् शिष्य ब्रह्मचारी के (मातरा) माता और (पितरा) पिताओं के समान उत्पादक और पालक गुरुजनों को (प्र आरुः) उत्तम रीति से प्राप्त होते हैं वे (सप्त वाणीः) सातों प्रकार की छन्दोमयी वाणी को (विविशुः) प्रविष्ट होते हैं। उनका ज्ञान विस्तृत होता है और वे दोनों (परिक्षिता पितरा) शिष्य और गुरु साथ रहने वाले, वा दोषों को सब प्रकार से दूर करने वाले पालकजनों का मां बाप के समान ही (प्र यक्षे) आदर करता हूं। वे ज्ञान प्रदान करने के लिये उसके (सं चरते) साथ रहते और उसके (दीर्घम् आयुः) दीर्घ जीवन और ज्ञान को (प्रसस्रते) फैलाते हैं। (२) तीक्ष्ण स्पर्श होने से अनि ‘शितिपृष्ठ’ है नीलपृष्ठ होने से सूर्य ‘शितिपृष्ठ’ है। किरणों द्वारा जल पान करने से ‘धासि’ है । (३) इसी प्रकार ज्ञानमय स्वरूप होने से परमेश्वर ‘शितिपृष्ठ’ और जगत् के धारण करने से ‘धासि’ है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः- १, ६, ९, १० त्रिष्टुप्। २, ३, ४, ५, ७ निचृत् त्रिष्टुप्। ८ स्वराट् पङ्क्तिः। ११ भुरिक् पङ्क्तिः॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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