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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 51 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 51/ मन्त्र 1
    ऋषिः - स्वस्त्यात्रेयः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अग्ने॑ सु॒तस्य॑ पी॒तये॒ विश्वै॒रूमे॑भि॒रा ग॑हि। दे॒वेभि॑र्ह॒व्यदा॑तये ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अग्ने॑ । सु॒तस्य॑ । पी॒तये॑ । विश्वैः॑ । ऊमे॑भिः । आ । ग॒हि॒ । दे॒वेभिः॑ । ह॒व्यऽदा॑तये ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्ने सुतस्य पीतये विश्वैरूमेभिरा गहि। देवेभिर्हव्यदातये ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्ने। सुतस्य। पीतये। विश्वैः। ऊमेभिः। आ। गहि। देवेभिः। हव्यऽदातये ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 51; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 3; वर्ग » 5; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    भा०-हे (अग्ने) अग्रणी नायक अग्निवत् तेजस्विन्! राजन् ! तू (विश्वेभिः ) समस्त (ऊमैः ) रक्षा साधनों और रक्षकों सहित ( सुतस्य पीतये ) उत्तम ओषधि के रसके समान राष्ट्र से प्राप्त ऐश्वर्य, एवं शासित राज्यपद के उपयोग के लिये और उत्पन्न किये निज पुत्रवत् प्रजावर्ग के पालन करने के लिये और ( हव्य-दातये ) देने योग्य अन्न, धन, अधिकार आदि देने के लिये ( देवेभिः) उत्तम विद्वानों, व्यवहारकुशल पुरुषों सहित ( आ गहि ) हमें प्राप्त हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - स्वस्त्यात्रेय ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवताः ॥ छन्द:-१ गायत्री । २, ३, ४ निचृद् गायत्री । ५, ८, ९, १० निचृदुष्णिक् । ६ उष्णिक् । ७ विराडुष्णिक् ११ निचृत्त्रिष्टुप । १२ त्रिष्टुप । १३ पंक्तिः । १४, १५ अनुष्टुप् ।।

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