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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 69 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 69/ मन्त्र 1
    ऋषिः - यजत आत्रेयः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्री रो॑च॒ना व॑रुण॒ त्रीँरु॒त द्यून्त्रीणि॑ मित्र धारयथो॒ रजां॑सि। वा॒वृ॒धा॒नाव॒मतिं॑ क्ष॒त्रिय॒स्यानु॑ व्र॒तं रक्ष॑माणावजु॒र्यम् ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्री । रो॒च॒ना । व॒रु॒ण॒ । त्रीन् । उ॒त । द्यून् । त्रीणि॑ । मि॒त्र॒ । धा॒र॒य॒थः॒ । रजां॑सि । व॒वृ॒धा॒नौ । अ॒मति॑म् । क्ष॒त्रिय॑स्य । अनु॑ । व्र॒तम् । रक्ष॑माणौ । अ॒जु॒र्यम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्री रोचना वरुण त्रीँरुत द्यून्त्रीणि मित्र धारयथो रजांसि। वावृधानावमतिं क्षत्रियस्यानु व्रतं रक्षमाणावजुर्यम् ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्री। रोचना। वरुण। त्रीन्। उत। द्यून्। त्रीणि। मित्र। धारयथः। रजांसि। ववृधानौ। अमतिम्। क्षत्रियस्य। अनु। व्रतम्। रक्षमाणौ। अजुर्यम् ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 69; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 4; वर्ग » 7; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    भा०-हे (वरुण) दुष्टों के वारण करने वाले ! हे (मित्र) प्राणवत् प्रिय, सर्वस्नेही न्यायकारिन् ! आप दोनों (त्री रोचना) अग्नि, सूर्य और विद्युत् तीनों दीप्तिमान् पदार्थों के तुल्य सर्वप्रकाशक तीनों वेदों के ज्ञानों को ( उत्) और ( त्रीन् ) तीन ( द्यून् ) प्रकाशों के समान तीनों प्रकारों के व्यवहारों को और ( त्रीणि रजांसि ) तीनों वर्णों के लोगों को ( धारयथः ) धारण करते हो । आप दोनों (क्षत्रियस्य) बलवान् क्षत्रिय के ( अमतिम् ) रूप को ( वावृधानौ ) बढ़ाते हुए और ( अजुर्यम् ) कभी नाश न होने वाले, स्थिर ( व्रतं ) कार्य व्रत की ( अनु रक्षमाणौ ) सबके अनुकूल, उत्तरोत्तर, प्रतिदिन रक्षा करते हुए सबों को धारण करते हो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - उत्चक्रिरात्रेय ऋषिः ॥ मित्रावरुणौ देवते ॥ छन्द-१ २ निचृत्त्रिष्टुप् । ३, ४ विराट् त्रिष्टुप् ॥ चतुऋचं सूक्तम् ॥

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