ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
अ॒ग्निर्होता॒ दास्व॑तः॒ क्षय॑स्य वृ॒क्तब॑र्हिषः। यं य॒ज्ञास॒श्चर॑न्ति॒ यं सं वाजा॑सः श्रव॒स्यवः॑ ॥२॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निः । होता॑ । दास्व॑तः । क्षय॑स्य । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । सम् । य॒ज्ञासः॑ । चर॑न्ति । यम् । सम् । वाजा॑सः । श्र॒व॒स्यवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निर्होता दास्वतः क्षयस्य वृक्तबर्हिषः। यं यज्ञासश्चरन्ति यं सं वाजासः श्रवस्यवः ॥२॥
स्वर रहित पद पाठअग्निः। होता। दास्वतः। क्षयस्य। वृक्तऽबर्हिषः। सम्। यज्ञासः। चरन्ति। यम्। सम्। वाजासः। श्रवस्यवः ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
विषय - यज्ञाग्निवत् विद्वान् और तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य । वनाग्निवत् तेजस्वी नायक ।
भावार्थ -
भा०- (यं ) जिसको ( यज्ञासः ) समस्त उपासक और सत्संगी पुरुष (सं चरन्ति ) प्राप्त होते हैं और (यं ) जिसको ( श्रवस्यवः ) अन्न, ज्ञान और यश की कामना करने वाले ( वाजासः ) बलवान्, ऐश्वर्यवान् और युद्धकुशल, वेगवान् अश्व सैन्यादि ( सं चरन्ति ) अच्छी प्रकार प्राप्त होकर उसके साथ विचरते हैं वह ( अग्नि:) अग्रणी नायक पुरुष ( वृक्त-बर्हिषः) वृद्धिशील राष्ट्र प्रजाजन को नाना प्रकार से विभक्त करने वाले ( दास्वतः ) नाना ऐश्वर्यों के देने वाले वा नाना दासादि भृत्यों से सम्पन्न ( क्षयस्य ) निवास करने योग्य, सर्वाश्रय, शरण, गृह, वैभव आदि का ( होता ) देने वाला हो ।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - missing
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