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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 2
    ऋषिः - गय आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - निचृदनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    अ॒ग्निर्होता॒ दास्व॑तः॒ क्षय॑स्य वृ॒क्तब॑र्हिषः। यं य॒ज्ञास॒श्चर॑न्ति॒ यं सं वाजा॑सः श्रव॒स्यवः॑ ॥२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निः । होता॑ । दास्व॑तः । क्षय॑स्य । वृ॒क्तऽब॑र्हिषः । सम् । य॒ज्ञासः॑ । चर॑न्ति । यम् । सम् । वाजा॑सः । श्र॒व॒स्यवः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निर्होता दास्वतः क्षयस्य वृक्तबर्हिषः। यं यज्ञासश्चरन्ति यं सं वाजासः श्रवस्यवः ॥२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निः। होता। दास्वतः। क्षयस्य। वृक्तऽबर्हिषः। सम्। यज्ञासः। चरन्ति। यम्। सम्। वाजासः। श्रवस्यवः ॥२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 2
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ विद्वद्गुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे विद्वन् ! यथा होताग्निर्दास्वतो वृक्तबर्हिषः क्षयस्य मध्ये वसति तथा यं श्रवस्यवो वाजासो यज्ञासः सं चरन्ति स संज्ञापको भवति ॥२॥

    पदार्थः

    (अग्निः) पावक इव (होता) दाता (दास्वतः) दातृस्वभावस्य (क्षयस्य) निवासस्य (वृक्तबर्हिषः) वृक्तं वर्जितं बर्हिर्यस्मिन् (सम्) (यज्ञासः) सङ्गन्तव्याः (चरन्ति) (यम्) (सम्) (वाजासः) वेगवन्तः (श्रवस्यवः) आत्मनः श्रवमिच्छवः ॥२॥

    भावार्थः

    मनुष्या विस्तीर्णावकाशानि गृहाणि निर्माय पुरुषार्थेन पदार्थविद्यां प्राप्नुवन्तु ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    अब विद्वानों के गुणों को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे विद्वान् ! जैसे (होता) दाता (अग्निः) अग्नि के सदृश पुरुष (दास्वतः) देनेवाले के स्वभाव से युक्त (वृक्तबर्हिषः) जल से रहित (क्षयस्य) स्थान के मध्य में बसता है, वैसे (यम्) जिसको (श्रवस्यवः) अपने धन की इच्छा करनेवाले (वाजासः) वेग से युक्त (यज्ञासः) मिलने योग्य जन (सम्, चरन्ति) उत्तम प्रकार संचार करते हैं, वह (सम्) उत्तम प्रकार जनानेवाला होता है ॥२॥

    भावार्थ

    मनुष्य बड़े अवकाशवाले गृहों को रच के पुरुषार्थ से पदार्थविद्या को प्राप्त हों ॥२॥

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    विषय

    यज्ञाग्निवत् विद्वान् और तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य । वनाग्निवत् तेजस्वी नायक ।

    भावार्थ

    भा०- (यं ) जिसको ( यज्ञासः ) समस्त उपासक और सत्संगी पुरुष (सं चरन्ति ) प्राप्त होते हैं और (यं ) जिसको ( श्रवस्यवः ) अन्न, ज्ञान और यश की कामना करने वाले ( वाजासः ) बलवान्, ऐश्वर्यवान् और युद्धकुशल, वेगवान् अश्व सैन्यादि ( सं चरन्ति ) अच्छी प्रकार प्राप्त होकर उसके साथ विचरते हैं वह ( अग्नि:) अग्रणी नायक पुरुष ( वृक्त-बर्हिषः) वृद्धिशील राष्ट्र प्रजाजन को नाना प्रकार से विभक्त करने वाले ( दास्वतः ) नाना ऐश्वर्यों के देने वाले वा नाना दासादि भृत्यों से सम्पन्न ( क्षयस्य ) निवास करने योग्य, सर्वाश्रय, शरण, गृह, वैभव आदि का ( होता ) देने वाला हो ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

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    विषय

    'यज्ञासः वाजासः श्रवस्यवः' [कैसा घर ? ]

    पदार्थ

    [१] (अग्निः) = वे अग्रणी प्रभु (दास्वतः) = [दसु उपक्षये] जिसमें से सब बुराइयों का उपक्षय कर दिया गया है अथवा [दास् दाने] दानवाले, जिसमें निरन्तर दान चलता है, (वृक्तबर्हिषः) = जिसमें से वासनाओं के बर्हि [घास] को काट दिया गया है, ऐसे वासनाशून्य (क्षयस्य) = गृह के (होता) = दाता हैं। प्रभु कृपा से हमारा घर दान की वृत्तिवाला व वासनाशून्य बनता है। [२] उस घर को प्रभु देते हैं (यम्) = जिसकी ओर (यज्ञासः) = यज्ञ (संचरन्ति) = गति करते हैं, (वाजास:) = शक्तियाँ (सम्) = गति करती हैं तथा (श्रवस्यवः) = ज्ञान की कामनावाले पुरुष गति करते हैं। इन गृहों के अन्दर रहनेवाले व्यक्ति शरीर में शक्ति-सम्पन्न [वाजास:] हृदयों में यज्ञ की भावनावाले [ यज्ञासः] तथा दीप्त मस्तिष्कवाले [श्रवस्यवः] होते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- प्रभु कृपा से हमारा घर वासनाओं से मलिन नहीं होता। यहाँ 'यज्ञों, शक्तियों व ज्ञानों' का निवास होता है।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसांनी मोठमोठी घरे बांधून पुरुषार्थाने पदार्थविद्या प्राप्त करावी. ॥ २ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Agni is the high-priest of Nature’s abundance for humanity, blessing the house of the liberal devotee ready to kindle the holy fire, since all nutriments, energies and all yajnic gifts of Divinity coexist and work with Agni.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the enlightened persons are described.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    As a donor is purifier like fire and he lives in the middle and independent auspicious house, which is inhabited by men of charitable disposition. In the same manner, the man who is surrounded by shrewd and intelligent men, desires food and good reputation and is worthy of association, and thus becomes the enlightener of the people.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should build spacious houses and acquire the knowledge of various articles.

    Foot Notes

    (क्षयस्य) निवासस्थ । क्षि-निवास गत्योः (भ्वा) अत्र-निवासर्थ। = Of the dwelling place.

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