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ऋग्वेद मण्डल - 5 के सूक्त 9 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 5/ सूक्त 9/ मन्त्र 4
    ऋषिः - गय आत्रेयः देवता - अग्निः छन्दः - भुरिगुष्णिक् स्वरः - ऋषभः

    उ॒त स्म॑ दुर्गृभीयसे पु॒त्रो न ह्वा॒र्याणा॑म्। पु॒रू यो दग्धासि॒ वनाग्ने॑ प॒शुर्न यव॑से ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒त । स्म॒ । दुः॒ऽगृ॒भी॒य॒से॒ । पु॒त्रः । न । ह्वा॒र्याणा॑म् । पु॒रु । यः । दग्धा॑ । असि॑ । वना॑ । अग्ने॑ । प॒शुः । न । यव॑से ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उत स्म दुर्गृभीयसे पुत्रो न ह्वार्याणाम्। पुरू यो दग्धासि वनाग्ने पशुर्न यवसे ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत। स्म। दुःऽगृभीयसे। पुत्रः। न। ह्वार्याणाम्। पुरु। यः। दग्धा। असि। वना। अग्ने। पशुः। न। यवसे ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 5; सूक्त » 9; मन्त्र » 4
    अष्टक » 4; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनर्विद्वद्गुणानाह ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने ! विद्वन् ! ह्वार्य्याणां पुत्रो न पुरू दुर्गृभीयसे स्म योऽग्निर्वना दग्धेवोत यवसे पशुर्नाऽसि तस्मात् पदार्थविदसि ॥४॥

    पदार्थः

    (उत) (स्म) (दुर्गृभीयसे) दुःखेन गृह्णासि (पुत्रः) (न) इव (ह्वार्याणाम्) कुटिलानाम् (पुरू) बहु। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (यः) (दग्धा) (असि) (वना) वनानि (अग्ने) अग्निः (पशुः) (न) इव (यवसे) अद्याय घासाय ॥४॥

    भावार्थः

    अत्रोपमालङ्कारः। यो हि पदार्थविद्याग्रहणाय पुत्रवद्धेनुवच्च वर्त्तते स एवाग्न्यादिविद्यां ज्ञातुमर्हति ॥४॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर विद्वानों के गुणों को कहते हैं ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वन् ! (ह्वार्याणाम्) कुटिलों के (पुत्रः) पुत्र के (नः) सदृश (पुरू) बहुत को (दुर्गृभीयसे) दुःख से ग्रहण करते (स्म) ही हो (यः) जो अग्नि (वना) वनों को (दग्धा) जलानेवाले के सदृश (उत) भी (यवसे) खाने योग्य घास के लिये (पशुः) पशु के (न) सदृश है, उससे पदार्थों को जाननेवाले (असि) हो ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में उपमालङ्कार है । जो पदार्थविद्या के ग्रहण के लिये पुत्र और गौ के सदृश वर्त्तमान है, वही अग्नि आदि की विद्या को जान सकता है ॥४॥

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    विषय

    यज्ञाग्निवत् विद्वान् और तेजस्वी राजा के कर्त्तव्य । वनाग्निवत् तेजस्वी नायक ।

    भावार्थ

    भा०- (ह्वार्याणाम् पुत्रः न ) कुटिलगामी सर्पों का बच्चा जिस प्रकार ( दुर्गृभीयते) बड़ी कठिनता से पकड़ में आता है, और जिस प्रकार अग्नि अति दाहक स्वभाव होने से कठिनता से पकड़ा जाता है और जिस प्रकार अग्नि (वना दग्धा ) वनों को भस्म करता है, और जिस प्रकार ( यवसे पशुः न ) घास चारा खाने के लिये पशु उत्सुक होता है उसी प्रकार हे (अग्ने) अग्रणी, अग्नि तुल्य तेजस्विन्! नायक! तू भी (ह्वार्याणाम् ) कुटिल, वक्र गति से जाने वाले सैन्यों का (पुत्रः ) बहुत बड़ा पालक होकर (दुर्-गृभी-यसे) शत्रुओं के हाथ बड़ी कठिनाई से आ । वे तुझे सहज ही वश नहीं कर सकें, (यः) जो तू ( वना इव ) जंगलों का अग्नि के तुल्य ही ( पुरु) बहुत से शत्रुओं को ( दग्धा ) भस्मसात् करने वाला हों, और ( यवसे) शत्रुओं को नाश करने के निमित्त तू ( पशुः) उत्तम द्रष्टा, विवेकी होकर रह वा शत्रुओं को भी तृणों को पशु के तुल्य विवेकी होकर उपभोग कर ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    missing

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    विषय

    पुत्रो न ह्वार्याणाम्

    पदार्थ

    [१] (उत) = और हे प्रभो ! आप (दुर्गृभीयसे स्म) = बड़ी कठिनता से ग्रहण किये जाते हैं। आपको प्राप्त करने के लिये 'दीर्घकाल तक, निरन्तर आदरपूर्वक' ध्यान के अभ्यास की आवश्यकता है । आप (ह्वार्याणाम्) = कुटिल गतिवालों के (पुत्रः न) = पुत्र के समान हैं, उन कुटिल गतिवालों को 'पुनाति त्रायते' पवित्र करते हैं और उनका रक्षण करते हैं। प्रभु-स्मरण से चित्त की सब वक्रता विनष्ट हो जाती है ब्रह्मभूत [भू प्राप्तौ] पुरुष सरल वृत्ति का हो जाता है । [२] हे प्रभो ! (यः) = जो आप हैं, वे (पुरू) = खूब ही (दग्धा असि) = वासनावृक्षों के वनों को जलानेवाले हैं। हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! आप (पशुः न) = सर्वद्रष्टा के समान होते हुए (यवसे) = [यु मिक्षणामिक्षणयोः] हमारी बुराइयों दूर करनेवाले तथा अच्छाइयों को मिलानेवाले होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ-ये कठिनता से प्राप्त होनेवाले प्रभु हमारी कुटिलताओं को दूर करते हैं, वासनाओं को जलाते हैं तथा हमारे साथ अच्छाइयों का मिश्रण करते हैं ।

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात उपमालंकार आहे. जो पदार्थविद्या ग्रहण करण्यासाठी पुत्र व गाईप्रमाणे (आज्ञाधारक बनून) वागतो तोच अग्नी इत्यादीची विद्या जाणू शकतो. ॥ ४ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    You who burn up vast forests and devour grasses like a hungry animal are a product of tortuous waves of energy, too tempestuous and too difficult to grab.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The attributes of the enlightened men are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! like the serpents, you are very difficult to be caught by your adversaries. You are full of splendor like the fire burning forests, or like an animal eating the grass. Therefore, you are the knower of science.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    He who is like a serpent or a cow for acquiring the knowledge of science, is fit to know the properties of energy and other elements.

    Foot Notes

    (ह्वार्याणाम् ) कुटिलानाम् । हृ -कौटिल्ये (भ्वा) = Of the serpents which creep crookedly. (यवसे) अद्याय घासाम । = For eatable grass.

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