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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 3 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 3/ मन्त्र 7
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    दि॒वो न यस्य॑ विध॒तो नवी॑नो॒द्वृषा॑ रु॒क्ष ओष॑धीषु नूनोत्। घृणा॒ न यो ध्रज॑सा॒ पत्म॑ना॒ यन्ना रोद॑सी॒ वसु॑ना॒ दं सु॒पत्नी॑ ॥७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दि॒वः । न । यस्य॑ । वि॒ध॒तः । नवी॑नोत् । वृषा॑ । रु॒क्षः । ओष॑धीषु । नू॒नो॒त् । घृणा॑ । न । यः । ध्रज॑सा । पत्म॑ना । यन् । आ । रोद॑सी॒ इति॑ । वसु॑ना । दम् । सु॒पत्नी॒ इति॑ सु॒ऽपत्नी॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दिवो न यस्य विधतो नवीनोद्वृषा रुक्ष ओषधीषु नूनोत्। घृणा न यो ध्रजसा पत्मना यन्ना रोदसी वसुना दं सुपत्नी ॥७॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दिवः। न। यस्य। विधतः। नवीनोत्। वृषा। रुक्षः। ओषधीषु। नूनोत्। घृणा। न। यः। ध्रजसा। पत्मना। यन्। आ। रोदसी इति। वसुना। दम्। सुपत्नी इति सुऽपत्नी ॥७॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
    अष्टक » 4; अध्याय » 5; वर्ग » 4; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    ( दिवः न ) तेजस्वी सूर्य के समान (विधतः ) विधान करते हुए, कर्म करते हुए या उपदेश करते हुए (यस्य ) जिसके ( नवीनोत् ) उत्तम उपदेश ध्वनित होता है, और जो स्वयं ( वृषा ) वर्षणशील मेघ के तुल्य ( रुक्षः ) कान्तिमान् वा उन्नत पद पर आरूढ़ होकर ( ओषधीषु ) वनस्पतियों के तुल्य प्रजाओं और सेनाओं पर ( नूनोत् ) आज्ञा वा शासन करता है । और ( यः ) जो ( घृणा ) दीप्ति और ( ध्रजसा ) वेग से युक्त होकर ( पत्मना ) उत्तम मार्ग से ( यन् ) जाता हुआ ( वसुना ) ऐश्वर्य से ( सु-पत्नी ) सुख से राष्ट्र का पालन करने वाले, ( रोदसी ) शत्रुओं को रुलाने वाले, सेनापति और सैन्य दोनों को उत्तम पुत्रादि के पालक पति पत्नी के समान ही (दम् ) दमन करता वा दानशील होकर पुष्ट करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः – १, ३, ४ त्रिष्टुप् । २, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप् । ८ भुरिक् पंक्तिः ।। अष्टर्चं सूक्तम्

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