Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 56 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 56/ मन्त्र 1
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - पूषा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    य ए॑नमा॒दिदे॑शति कर॒म्भादिति॑ पू॒षण॑म्। न तेन॑ दे॒व आ॒दिशे॑ ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यः । ए॒न॒म् । आ॒ऽदिदे॑शति । क॒र॒म्भ॒ऽअत् । इति॑ । पू॒षण॑म् । न । तेन॑ । दे॒वः । आ॒ऽदिशे॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य एनमादिदेशति करम्भादिति पूषणम्। न तेन देव आदिशे ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यः। एनम्। आऽदिदेशति। करम्भऽअत्। इति। पूषणम्। न। तेन। देवः। आऽदिशे ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 56; मन्त्र » 1
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 1

    भावार्थ -

    (यः) जो विद्वान् ( एनं पूषणम् ) उस प्रजा के पोषक राजा वा प्रभु को ( करम्भात् ) स्वयं कर्म फल का भोक्ता होकर इस रूप से (आ दिदेशति) उस प्रभु की स्तुति करता है ( तेन ) उसे ( देवः ) कर्म फल देने वाले प्रभु से ( आदिशे न ) कार्य-फल की याचना करने की आवश्यकता नहीं । वह प्रभु विना मांगे ही स्वयं कर्म करने पर फल देता ही है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

    भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ पूषा देवता ॥ छन्दः – १, ४, ५ गायत्री । २, ३ निचृद्गायत्री । ६ स्वराडुष्णिक् ।।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top