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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 61/ मन्त्र 12
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - सरस्वती छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    त्रि॒ष॒धस्था॑ स॒प्तधा॑तुः॒ पञ्च॑ जा॒ता व॒र्धय॑न्ती। वाजे॑वाजे॒ हव्या॑ भूत् ॥१२॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्रि॒ऽस॒धस्था॑ । स॒प्तऽधा॑तुः । पञ्च॑ । जा॒ता । व॒र्धय॑न्ती । वाजे॑ऽवाजे । हव्या॑ । भू॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्रिषधस्था सप्तधातुः पञ्च जाता वर्धयन्ती। वाजेवाजे हव्या भूत् ॥१२॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्रिऽसधस्था। सप्तऽधातुः। पञ्च। जाता। वर्धयन्ती। वाजेऽवाजे। हव्या। भूत् ॥१२॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 61; मन्त्र » 12
    अष्टक » 4; अध्याय » 8; वर्ग » 32; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    जो वाणी ( त्रि-सधस्था ) नाभि, उरस् और कण्ठ तीनों में एक साथ ही विराजती है । जो ( सप्त-धातुः ) रक्त, मेदस्, मांस, अस्थि, वसा, मज्जा और शुक्र सातों से धारण करने योग्य होकर ( जाता ) उत्पन्न हुए (पञ्च ) पांचों ज्ञानेन्द्रियों को ( वर्धयन्ती ) बढ़ाती हुई, ( वाजे वाजे ) प्रत्येक ज्ञान, बल और ऐश्वर्य के कार्य में ( हव्या भूत् ) स्तुति करने योग्य है । वेदमयी वाणी सात छन्दों से धारण करने योग्य होने से सप्त धातु और ब्राह्मणादि और निषाद इन पांचों को बढ़ाती है । प्रत्येक अवसर में ईश्वरस्तुति के योग्य है। देवी, स्त्री, सातों धातुओं को धारण करने वाली, पिता, स्वसुर, भाई, देवर, और पुत्र पांचों का मान बढ़ाती हुई प्रत्येक यज्ञ में संगिनी रूप से स्वीकार्य है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः ॥ सरस्वती देवता ॥ छन्दः – १, १३ निचृज्जगती । २ जगती । ३ विराड् जगती । ४, ६, ११, १२ निचृद्गायत्री । ५, विराड् गायत्री । ७, ८ गायत्री । १४ पंक्ति: ॥ चतुर्दशर्चं सूक्तम् ॥

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