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ऋग्वेद मण्डल - 6 के सूक्त 63 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 6/ सूक्त 63/ मन्त्र 11
    ऋषिः - भरद्वाजो बार्हस्पत्यः देवता - अश्विनौ छन्दः - आसुरीपङ्क्ति स्वरः - पञ्चमः

    आ वां॑ सु॒म्ने वरि॑मन्त्सू॒रिभिः॑ ष्याम् ॥११॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । वा॒म् । सु॒म्ने । वरि॑मन् । सू॒रिऽभिः॑ । स्या॒म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ वां सुम्ने वरिमन्त्सूरिभिः ष्याम् ॥११॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ। वाम्। सुम्ने। वरिमन्। सूरिऽभिः। स्याम् ॥११॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 6; सूक्त » 63; मन्त्र » 11
    अष्टक » 5; अध्याय » 1; वर्ग » 4; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    सत्य व्यवहार निपुण राजा प्रजावर्गो ! वा सभा सेनाध्यक्षो ! या गृहस्थ स्त्री पुरुषो ! मैं ( वां ) आप दोनों के ( वरिमन् सुम्ने ) अति विशाल सुखप्रद शासन में ( सूरिभिः ) विद्वानों के सहित (स्याम् ) रहूं । इति चतुर्थो वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भरद्वाजो बार्हस्पत्य ऋषिः॥ अश्विनौ देवते ॥ छन्दः – १ स्वराड्बृहती । २, ४, ६, ७ पंक्ति:॥ ३, १० भुरिक पंक्ति ८ स्वराट् पंक्तिः। ११ आसुरी पंक्तिः॥ ५, ९ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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