ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 101/ मन्त्र 4
ऋषिः - वसिष्ठः कुमारो वाग्नेयः
देवता - पर्जन्यः
छन्दः - विराट्त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
यस्मि॒न्विश्वा॑नि॒ भुव॑नानि त॒स्थुस्ति॒स्रो द्याव॑स्त्रे॒धा स॒स्रुराप॑: । त्रय॒: कोशा॑स उप॒सेच॑नासो॒ मध्व॑: श्चोतन्त्य॒भितो॑ विर॒प्शम् ॥
स्वर सहित पद पाठयस्मि॑न् । विश्वा॑नि । भुव॑नानि । त॒स्थुः । ति॒स्रः । द्यावः॑ । त्रे॒धा । स॒सुः । आपः॑ । त्रयः॑ । कोशा॑सः । उ॒प॒ऽसेच॑नासः । मध्वः॑ । श्चो॒त॒न्ति॒ । अ॒भितः॑ । वि॒ऽर॒प्शम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
यस्मिन्विश्वानि भुवनानि तस्थुस्तिस्रो द्यावस्त्रेधा सस्रुराप: । त्रय: कोशास उपसेचनासो मध्व: श्चोतन्त्यभितो विरप्शम् ॥
स्वर रहित पद पाठयस्मिन् । विश्वानि । भुवनानि । तस्थुः । तिस्रः । द्यावः । त्रेधा । ससुः । आपः । त्रयः । कोशासः । उपऽसेचनासः । मध्वः । श्चोतन्ति । अभितः । विऽरप्शम् ॥ ७.१०१.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 101; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 7; वर्ग » 1; मन्त्र » 4
विषय - मेघविज्ञान । प्रकृति परमाणुओं का तीन प्रकार की गति ।
भावार्थ -
( यस्मिन् ) जिसके आधार पर ( विश्वानि भुवनानि ) समस्त लोक, समस्त उत्पन्न प्राणी, ( तस्थुः ) स्थिर हैं, ( यस्मिन् तिस्रः द्यावः ) जिसके आश्रय पर तीनों लोक पृथिवी, अन्तरिक्ष और सूर्य स्थित हैं। ( यस्मिन् ) जिसका आश्रय लेकर ( आपः त्रेधा सस्रुः ) जल तीन प्रकार से गति करते हैं, पृथिवी से वाष्प बनकर ऊपर उठते हैं, मेघ से जल बन कर नीचे आते हैं और समुद्र से वायु के बलपर भूमिपर आते हैं। अथवा ( आपः ) प्रकृति के सूक्ष्म परमाणु जिसके आश्रय पर ( त्रेधा सस्रुः ) तीन प्रकार की गति करते हैं—संयोग, विभाग और चक्र गति । और ( यस्मिन् ) जिसके आश्रय ( त्रयः कोशासः ) तीन कोश ( मध्वः उप-सेचनासः ) जल बरसाने वाले मेघों के समान मधुर आनन्द की वर्षा करने वाले होकर ( विरप्शम् अभितः ) उस महान् के चारों ओर ( श्वोतन्ति ) गति करते हैं।
टिप्पणी -
अध्यात्म में तीन कोश—विज्ञानमय, मनोमय, आनन्दमय। सूर्य में तीन कोश—क्रोमोस्फी़यर फ़ोटोस्फी़यर, और उद्रजन। यह सब उसी महान् प्रभु परमेश्वर के ही अधीन अद्भुत कर्म हो रहे हैं।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठः कुमारो वाग्नेय ऋषिः॥ पर्जन्यो देवता॥ छन्दः—१, ६ त्रिष्टुप्। २, ४, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ३ निचृत् त्रिष्टुप्॥
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