ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 16/ मन्त्र 2
स यो॑जते अरु॒षा वि॒श्वभो॑जसा॒ स दु॑द्रव॒त्स्वा॑हुतः। सु॒ब्रह्मा॑ य॒ज्ञः सु॒शमी॒ वसू॑नां दे॒वं राधो॒ जना॑नाम् ॥२॥
स्वर सहित पद पाठसः । यो॒ज॒ते॒ । अ॒रु॒षा । वि॒श्वऽभो॑जसा । सः । दु॒द्र॒व॒त् । सुऽआ॑हुतः । सु॒ऽब्रह्मा॑ । य॒ज्ञः । सु॒ऽशमी॑ । वसू॑नाम् । दे॒वम् । राधः॑ । जना॑नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
स योजते अरुषा विश्वभोजसा स दुद्रवत्स्वाहुतः। सुब्रह्मा यज्ञः सुशमी वसूनां देवं राधो जनानाम् ॥२॥
स्वर रहित पद पाठसः। योजते। अरुषा। विश्वऽभोजसा। सः। दुद्रवत्। सुऽआहुतः। सुऽब्रह्मा। यज्ञः। सुऽशमी। वसूनाम्। देवम्। राधः। जनानाम् ॥२॥
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 16; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
अष्टक » 5; अध्याय » 2; वर्ग » 21; मन्त्र » 2
विषय - सुब्रह्मा, वेदज्ञ का आदर ।
भावार्थ -
(सः ) वह विद्वान् पुरुष ( अरुषा ) तेज से युक्त अश्वों के समान ( विश्व-भोजसा ) समस्त विश्व के पालक, जल और अग्नि तत्व को ( योजते ) रथ में संयुक्त करता है ( सः स्वाहुतः ) वह उत्तम रीति से आदृत ( दुद्रवत् ) अति वेग से जाने में समर्थ होता है । इसी प्रकार वह ( सु-ब्रह्मा ) उत्तम वेदों का ज्ञाता विद्वान् और उत्तम धनसम्पन्न राजा, ( यज्ञः ) पूजनीय, ( सु-शमी ) सुकर्मा और उत्तम, शम का साधक ( वसूनां जनानां ) वसी प्रजाओं में से (देवं ) सुख देने वाले ( राधः ) ऐश्वर्य को भी ( दुद्रवत् ) प्राप्त होता है । ( २ ) इसी प्रकार जो 'विश्व' नाम जीवात्मा के पालक अश्ववत् नियुक्त प्राण अपान दोनों को ( योजते ) योग द्वारा वश करता है वह (सु-आहुतः ) उत्तम ज्ञानी, यष्टा, सुकर्मा, होकर वसु, जीवों के आराध्य परम देव को प्राप्त है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः। अग्निर्देवता॥ छन्द्रः - १ स्वराडनुष्टुप्। ५ निचृदनुष्टुप्। ७ अनुष्टुप्।। ११ भुरिगनुष्टुप्। २ भुरिग्बृहती। ३ निचृद् बृहती। ४, ९, १० बृहती। ६, ८, १२ निचृत्पंक्तिः।।
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