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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 46 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 46/ मन्त्र 4
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - रुद्रः छन्दः - स्वराट्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    मा नो॑ वधी रुद्र॒ मा परा॑ दा॒ मा ते॑ भूम॒ प्रसि॑तौ हीळि॒तस्य॑। आ नो॑ भज ब॒र्हिषि॑ जीवशं॒से यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभिः॒ सदा॑ नः ॥४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मा । नः॒ । व॒धीः॒ । रु॒द्र॒ । मा । परा॑ । दाः॒ । मा । ते॒ । भू॒म॒ । प्रऽसि॑तौ । ही॒ळि॒तस्य॑ । आ । नः॒ । भ॒ज॒ । ब॒र्हिषि॑ । जी॒व॒ऽशं॒से । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मा नो वधी रुद्र मा परा दा मा ते भूम प्रसितौ हीळितस्य। आ नो भज बर्हिषि जीवशंसे यूयं पात स्वस्तिभिः सदा नः ॥४॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मा। नः। वधीः। रुद्र। मा। परा। दाः। मा। ते। भूम। प्रऽसितौ। हीळितस्य। आ। नः। भज। बर्हिषि। जीवऽशंसे। यूयम्। पात। स्वस्तिऽभिः। सदा। नः ॥४॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 46; मन्त्र » 4
    अष्टक » 5; अध्याय » 4; वर्ग » 13; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    हे ( रुद्र ) दुष्टों को रुलाने और प्रजा के दुःखों को दूर करने वाले ! तू (नः मा वधी:) हमें मत मार, मत दण्डित कर । ( मा परा दाः) हमें त्याग मत कर, परे मत कर । हम ( हीडितस्य ) क्रुद्ध हुए ( ते ) तेरे ( प्रसितौ ) बन्धनागार में ( मा भूम ) न हों । तू ( जीव-शंसे ) जीवित जनों से प्रशंसनीय (बर्हिषि ) वृद्धिशील राष्ट्र में ( नः ) हमें ( आ भज ) प्राप्त हो । हे विद्वान् जनो ! ( यूयं ) आप सब (नः ) हमें ( स्वस्तिभिः सदा पात ) उत्तम साधनों से सदा पालन करो । इति त्रयोदशो वर्गः ॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः॥ रुद्रो देवता॥ छन्दः – २ निचृत्त्रिष्टुप् । १ विराड् जगती। ३ निचृज्जगती। ४ स्वराट् पंक्तिः॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥

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