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ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 61 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 61/ मन्त्र 1
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - मित्रावरुणौ छन्दः - भुरिक्पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    उद्वां॒ चक्षु॑र्वरुण सु॒प्रती॑कं दे॒वयो॑रेति॒ सूर्य॑स्तत॒न्वान्। अ॒भि यो विश्वा॒ भुव॑नानि॒ चष्टे॒ स म॒न्युं मर्त्ये॒ष्वा चि॑केत ॥१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । वा॒म् । चक्षुः॑ । व॒रु॒णा॒ । सु॒ऽप्रती॑कम् । दे॒वयोः॑ । ए॒ति॒ । सूर्यः॑ । त॒त॒न्वान् । अ॒भि । यः । विश्वा॑ । भुव॑नानि । च॒ष्टे॒ । सः । म॒न्युम् । मर्त्ये॑षु । आ । चि॒के॒त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उद्वां चक्षुर्वरुण सुप्रतीकं देवयोरेति सूर्यस्ततन्वान्। अभि यो विश्वा भुवनानि चष्टे स मन्युं मर्त्येष्वा चिकेत ॥१॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत्। वाम्। चक्षुः। वरुणा। सुऽप्रतीकम्। देवयोः। एति। सूर्यः। ततन्वान्। अभि। यः। विश्वा। भुवनानि। चष्टे। सः। मन्युम्। मर्त्येषु। आ। चिकेत ॥१॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 61; मन्त्र » 1
    अष्टक » 5; अध्याय » 5; वर्ग » 3; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे ( वरुण ) एक दूसरे का वरण करने वाले एवं सबसे वरण करने योग्य श्रेष्ठ स्त्री पुरुषो ! ( सूर्यः चक्षुः ततन्वान् ) सूर्य जिस प्रकार आंख की शक्ति को बढ़ाता है उसी प्रकार ( सूर्य: ) सूर्य के समान तेजस्वी, ज्ञान का प्रकाशक परमेश्वर और विद्वान् पुरुष ( देवयोः ) ज्ञान के इच्छुक ( वां ) आप दोनों की ( प्रतीकं) उत्तम प्रतीति या ज्ञान के देने वाले (चक्षुः ) प्रकाशक प्रज्ञानेत्र को ( ततन्वान् ) अधिक विस्तृत करता हुआ ( एति ) प्राप्त हो । ( यः ) जो ( विश्वा भुवनानि ) समस्त लोकों और पदार्थों को (अभि चष्टे) प्रकाशित करता और सब पदार्थों का उपदेश करता है ( सः ) वह ( मर्त्येषु ) मनुष्यों में ( मन्युम् ) मनन करने योग्य उत्तम ज्ञान भी ( आ चिकेत ) प्रदान करता है । अर्थात् परमेश्वर ही मनुष्यों में सूर्य के समान ज्ञान का प्रकाश देता है । इसी प्रकार तेजस्वी विद्वान् भी मनुष्यों में ज्ञान का दान करे ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ॥ मित्रा वरुणौ देवते ॥ छन्दः—१ भुरिक् पंक्तिः । २, ४ त्रिष्टुप् । ३, ५, ६, ७ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ सप्तर्चं सूक्तम् ॥

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