ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 93/ मन्त्र 4
गी॒र्भिर्विप्र॒: प्रम॑तिमि॒च्छमा॑न॒ ईट्टे॑ र॒यिं य॒शसं॑ पूर्व॒भाज॑म् । इन्द्रा॑ग्नी वृत्रहणा सुवज्रा॒ प्र नो॒ नव्ये॑भिस्तिरतं दे॒ष्णैः ॥
स्वर सहित पद पाठगीः॒ऽभिः । विप्रः॑ । प्रऽम॑तिम् । इ॒च्छमा॑नः । ईट्टे॑ । र॒यिम् । य॒शस॑म् । पू॒र्व॒ऽभाज॑म् । इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑ । वृ॒त्र॒ऽह॒ना॒ । सु॒ऽव॒ज्रा॒ । प्र । नः॒ । नव्ये॑भिः । ति॒र॒त॒म् । दे॒ष्णैः ॥
स्वर रहित मन्त्र
गीर्भिर्विप्र: प्रमतिमिच्छमान ईट्टे रयिं यशसं पूर्वभाजम् । इन्द्राग्नी वृत्रहणा सुवज्रा प्र नो नव्येभिस्तिरतं देष्णैः ॥
स्वर रहित पद पाठगीःऽभिः । विप्रः । प्रऽमतिम् । इच्छमानः । ईट्टे । रयिम् । यशसम् । पूर्वऽभाजम् । इन्द्राग्नी इति । वृत्रऽहना । सुऽवज्रा । प्र । नः । नव्येभिः । तिरतम् । देष्णैः ॥ ७.९३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 93; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 4
विषय - अग्रणी नायकों, वीरों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
( विप्रः ) विद्वान, बुद्धिमान् पुरुष ( गीर्भि: ) वेदवाणियों द्वारा ( प्र-मतिम् ) उत्तम कोटि का ज्ञान ( इच्छमान: ) प्राप्त करना चाहता हुआ, ( पूर्व-भाजम् ) पूर्व के विद्वानों से सेवित, एवं शिष्यों के प्रति उपदिष्ट, ( यशसं ) यशोजनक ( रयिम् ) ज्ञानैश्वर्य की ( इट्टे ) याचना करे । और ( इन्द्राग्नी ) आचार का शिक्षक आचार्य, ज्ञान का दाता विद्वान् दोनों वीर नायकों के समान ( वृत्र-हणा ) दुष्ट विघ्नों को नाश करने वाले ( सु-वज्रा ) पापादि के भली प्रकार वर्जन करने वाले उपदेश और ज्ञान रूप वज्र से युक्त होकर ( नव्येभिः देष्णैः ) नये से नये उपदेष्टव्य ज्ञानों द्वारा ( नः प्र तिरतम् ) हमें बढ़ावें ।
टिप्पणी -
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः –१, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २,५ आर्षी त्रिष्टुप् । ३, ४, ६, ७ विराट् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
इस भाष्य को एडिट करें