Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 7 के सूक्त 93 के मन्त्र
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 93/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - इन्द्राग्नी छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उपो॑ ह॒ यद्वि॒दथं॑ वा॒जिनो॒ गुर्धी॒भिर्विप्रा॒: प्रम॑तिमि॒च्छमा॑नाः । अर्व॑न्तो॒ न काष्ठां॒ नक्ष॑माणा इन्द्रा॒ग्नी जोहु॑वतो॒ नर॒स्ते ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उपो॒ इति॑ । ह॒ । यत् । वि॒दथ॑म् । वा॒जिनः॑ । गुः । धी॒भिः । विप्राः॑ । प्रऽम॑तिम् । इ॒च्छमा॑नाः । अर्व॑न्तः । न । काष्ठा॑म् । नक्ष॑माणाः । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । जोहु॑वतः । नरः॑ । ते ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उपो ह यद्विदथं वाजिनो गुर्धीभिर्विप्रा: प्रमतिमिच्छमानाः । अर्वन्तो न काष्ठां नक्षमाणा इन्द्राग्नी जोहुवतो नरस्ते ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उपो इति । ह । यत् । विदथम् । वाजिनः । गुः । धीभिः । विप्राः । प्रऽमतिम् । इच्छमानाः । अर्वन्तः । न । काष्ठाम् । नक्षमाणाः । इन्द्राग्नी इति । जोहुवतः । नरः । ते ॥ ७.९३.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 93; मन्त्र » 3
    अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 15; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    ( यत् ) जो ( नरः ) मनुष्य ( वाजिनः ) बलवान्, संग्राम-चतुर और ऐश्वर्यवान् और ( प्रमतिम् इच्छमानाः ) उत्तम बुद्धि और उत्कृष्ट ज्ञान को चाहने वाले ( विप्राः ) बुद्धिमान् पुरुष ( धीभिः ) बुद्धियों और कर्मों द्वारा ( विदथं उपो अगुः ) उत्तम ज्ञान, उत्तम ऐश्वर्य और उत्तम संग्राम को प्राप्त करते हैं ( ते ) वे ( नरः ) उत्तम जन ( इन्द्राग्नी ) इन्द्र अग्नि, विद्युत् अग्नि, और आचार्य और अध्यापक और सभापति सेनापति इन २ को ( जोहुवतः ) अपना प्रमुख स्वीकार करते हुए, उन के प्रति अपने को सौंपते हुए ( काष्ठां अर्वन्तः ) दूर २ देश की सीमा का अश्व के समान वेग से आगे बढ़ते हुए ( काष्ठां ) काष्ठा, अर्थात् 'क' परम सुखमय 'आस्था' स्थिति को ( नक्षमाणाः ) प्राप्त हुए ( विदथं उपो गुः ) प्राप्तव्य उद्देश्य प्राप्त करते हैं। विद्वान् गुरुओं को प्राप्त कर ज्ञानी लोग काष्ठा = गाष्ठा, अर्थात् वेद वाणियों में परम स्थिति को प्राप्त करके ( विदथं उपो अगुः ) प्राप्य परम धर्म तत्व, सुख या ज्ञान को पाते हैं। सभा सेनापति के अधीन जन 'काष्ठा' अर्थात राष्ट्र या भूमि की चरम सीमा तक पहुंच जाते हैं तब वे सार्वभौम राज्य करते का शासन करते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः ॥ इन्द्राग्नी देवते ।। छन्दः –१, ८ निचृत् त्रिष्टुप् । २,५ आर्षी त्रिष्टुप् । ३, ४, ६, ७ विराट् त्रिष्टुप् ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top