ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 94/ मन्त्र 10
यत्सोम॒ आ सु॒ते नर॑ इन्द्रा॒ग्नी अजो॑हवुः । सप्ती॑वन्ता सप॒र्यव॑: ॥
स्वर सहित पद पाठयत् । सोमे॑ । आ । सु॒ते । नरः॑ । इ॒न्द्रा॒ग्नी इति॑ । अजो॑हवुः । सप्ति॑ऽवन्ता । स॒प॒र्यवः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
यत्सोम आ सुते नर इन्द्राग्नी अजोहवुः । सप्तीवन्ता सपर्यव: ॥
स्वर रहित पद पाठयत् । सोमे । आ । सुते । नरः । इन्द्राग्नी इति । अजोहवुः । सप्तिऽवन्ता । सपर्यवः ॥ ७.९४.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 94; मन्त्र » 10
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
विषय - नायक नायिका जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
हे ( सप्तीवन्ता ) उत्तम अश्वों के स्वामी ( इन्द्राग्नी ) विद्युत्, अग्निवत् तेजस्वी, ज्ञानप्रकाशक और शत्रुसंतापक नायक जनो ! ( यत् ) जब ( सोमे सुते ) पुत्रवत् प्रिय 'सोम' अर्थात् ओषधि अन्नादिवत् भोग्य सम्पन्न राष्ट्र में ( नरः ) नायक लोग ( सपर्यवः ) सेवा शुश्रूषा करते हुए ( आ अजोहवुः ) आदरपूर्वक बुलाते हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः—१, ३, ८, १० आर्षी निचृद् गायत्री । २, ४, ५, ६, ७, ९ , ११ आर्षी गायत्री । १२ आर्षी निचृदनुष्टुप् ॥ द्वादर्शं सूक्तम्॥
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