ऋग्वेद - मण्डल 7/ सूक्त 94/ मन्त्र 11
उ॒क्थेभि॑र्वृत्र॒हन्त॑मा॒ या म॑न्दा॒ना चि॒दा गि॒रा । आ॒ङ्गू॒षैरा॒विवा॑सतः ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒क्थेभिः॑ । वृ॒त्र॒ऽहन्त॑मा । या । म॒न्दा॒ना । चि॒त् । आ । गि॒रा । आ॒ङ्गू॒षैः । आ॒ऽविवा॑सतः ॥
स्वर रहित मन्त्र
उक्थेभिर्वृत्रहन्तमा या मन्दाना चिदा गिरा । आङ्गूषैराविवासतः ॥
स्वर रहित पद पाठउक्थेभिः । वृत्रऽहन्तमा । या । मन्दाना । चित् । आ । गिरा । आङ्गूषैः । आऽविवासतः ॥ ७.९४.११
ऋग्वेद - मण्डल » 7; सूक्त » 94; मन्त्र » 11
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
अष्टक » 5; अध्याय » 6; वर्ग » 18; मन्त्र » 5
विषय - नायक नायिका जनों के कर्त्तव्य ।
भावार्थ -
( या ) जो आप दोनों (वृत्रहन्तमा ) दुष्टों को अच्छी प्रकार दण्ड देने वाले, ( उक्थेभिः ) उत्तम वेद-वचनों और ( आमन्दाना ) सब को प्रसन्न करते हुए ( गिरा चित् ) वेद वाणी से और ( आंगूषैः ) उत्तम स्तुति-वचनों और उपदेशों से ( आ विवासतः ) सर्वत्र ज्ञानप्रकाश करते हैं ।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - वसिष्ठ ऋषिः॥ इन्द्राग्नी देवते॥ छन्दः—१, ३, ८, १० आर्षी निचृद् गायत्री । २, ४, ५, ६, ७, ९ , ११ आर्षी गायत्री । १२ आर्षी निचृदनुष्टुप् ॥ द्वादर्शं सूक्तम्॥
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