ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 35/ मन्त्र 1
अ॒ग्निनेन्द्रे॑ण॒ वरु॑णेन॒ विष्णु॑नादि॒त्यै रु॒द्रैर्वसु॑भिः सचा॒भुवा॑ । स॒जोष॑सा उ॒षसा॒ सूर्ये॑ण च॒ सोमं॑ पिबतमश्विना ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒ग्निना॑ । इन्द्रे॑ण । वरु॑णेन । विष्णु॑ना । आ॒दि॒त्यैः । रु॒द्रैः । वसु॑ऽभिः । स॒चा॒ऽभुवा॑ । स॒ऽजोष॑सौ । उ॒षसा॑ । सूर्ये॑ण । च॒ । सोम॑म् । पि॒ब॒त॒म् । अ॒श्वि॒ना॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्निनेन्द्रेण वरुणेन विष्णुनादित्यै रुद्रैर्वसुभिः सचाभुवा । सजोषसा उषसा सूर्येण च सोमं पिबतमश्विना ॥
स्वर रहित पद पाठअग्निना । इन्द्रेण । वरुणेन । विष्णुना । आदित्यैः । रुद्रैः । वसुऽभिः । सचाऽभुवा । सऽजोषसौ । उषसा । सूर्येण । च । सोमम् । पिबतम् । अश्विना ॥ ८.३५.१
ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 35; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
अष्टक » 6; अध्याय » 3; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
विषय - जितेन्द्रिय स्त्री पुरुषों के कर्त्तव्य।
भावार्थ -
हे (अश्विना) उत्तम जितेन्द्रिय विद्वान् स्त्री पुरुषो ! हे रथी सारथिवत् राजा सचिवादि जनो ! आप दोनों (अग्निना) अग्नि (इन्द्रेण) विद्युत्, (वरुणेन ) जल, (विष्णुना) व्यापक, एवं विविध पदार्थों के शोधक, सूर्य (आदित्यैः) सूर्य की किरणों और ( रुद्रैः वसुभिः ) रोगनाशक और जीव के बसाने योग्य साधनों से और ( उषसा सूर्येण ) उषा, प्रभात की दीप्ति और सूर्य के समान ( स-जोषसा ) समान प्रीति युक्त होकर ( सोमं पिबतम् ) ‘सोम’ अर्थात् ऐश्वर्य का पालन, उत्पन्न जगत् और पुत्र राष्ट्रादि का पालन करो तथा ऐश्वर्य अन्न जलादि का उपभोग करो। इसी प्रकार वे दोनों ( सचा-भुवा ) सदा साथ, संगत, एवं समवाय से परस्पर सहयोगी रहकर ( अग्निना ) अग्रणी नायक, तेजस्वी विद्वान् ( इन्द्रेण ) ऐश्वर्यवान्, ( वरुणेन ) श्रेष्ठ, ( विष्णुना ) व्यापक बलशाली और ( आदित्यैः रुद्रैः वसुभिः ) सूर्य की किरणों, प्राणों और प्रजाजनों आदि से मिलकर ऐश्वर्यादि का उपभोग और पालन करो।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
श्यावाश्व ऋषिः॥ अश्विनौ देवते॥ छन्दः—१—५, १६, १८ विराट् त्रिष्टुप्॥ ७–९, १३ निचृत् त्रिष्टुप्। ६, १०—१२, १४, १५, १७ भुरिक् पंक्ति:। २०, २१, २४ पंक्ति:। १९, २२ निचृत् पंक्ति:। २३ पुरस्ता- ज्ज्योतिर्नामजगती॥ चतुर्विंशत्यृचं सूक्तम्॥
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