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ऋग्वेद मण्डल - 8 के सूक्त 94 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 8/ सूक्त 94/ मन्त्र 2
    ऋषिः - बिन्दुः पूतदक्षो वा देवता - मरूतः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    यस्या॑ दे॒वा उ॒पस्थे॑ व्र॒ता विश्वे॑ धा॒रय॑न्ते । सूर्या॒मासा॑ दृ॒शे कम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्याः॑ । दे॒वाः । उ॒पऽस्थे॑ । व्र॒ता । विश्वे॑ । धा॒रय॑न्ते । सूर्या॒मासा॑ । दृ॒शे । कम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्या देवा उपस्थे व्रता विश्वे धारयन्ते । सूर्यामासा दृशे कम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्याः । देवाः । उपऽस्थे । व्रता । विश्वे । धारयन्ते । सूर्यामासा । दृशे । कम् ॥ ८.९४.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 8; सूक्त » 94; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 6; वर्ग » 28; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    ( यस्याः ) जिस की ( उपस्थे ) गोद में, ( विश्वे देवाः ) सब मनुष्य ( व्रता धारयन्ते) नाना कर्म, व्रत और नाना अन्न भी धारण करते, प्राप्त करते हैं, उसी के आश्रय पर (सूर्यामासा) सूर्य और चन्द्र दोनों ही ( दृशे ) प्रकाश द्वारा दर्शन कराने के लिये, उस के समीप विद्यमान रहते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - बिन्दुः पूतदक्षो वा ऋषिः॥ मरुतो देवता॥ छन्दः—१, २, ८ विराड् गायत्री। ३, ५, ७, ९ गायत्री। ४, ६, १०—१२ निचृद् गायत्री॥

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