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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 10 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 10/ मन्त्र 1
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र स्वा॒नासो॒ रथा॑ इ॒वार्व॑न्तो॒ न श्र॑व॒स्यव॑: । सोमा॑सो रा॒ये अ॑क्रमुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । स्वा॒नासः॑ । रथाः॑ऽइव । अर्व॑न्तः । न । श्र॒व॒स्यवः॑ । सोमा॑सः । रा॒ये । अ॒क्र॒मुः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र स्वानासो रथा इवार्वन्तो न श्रवस्यव: । सोमासो राये अक्रमुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । स्वानासः । रथाःऽइव । अर्वन्तः । न । श्रवस्यवः । सोमासः । राये । अक्रमुः ॥ ९.१०.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 10; मन्त्र » 1
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 34; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    (रथाः इव) वेगवान् रथों और (अर्वन्तः न) अश्वों के समान (स्वानासः) अधिक स्वन अर्थात् ध्वनि करते हुए (श्रवस्यवः) ज्ञान श्रवण के उत्सुक (सोमासः) विद्यार्थी और (श्रवस्यवः सोमासः) यश के इच्छुक पदाभिषिक्त जन (राये प्र अक्रमुः) ऐश्वर्य प्राप्त करने के लिये कदम बढ़ावें। इसी प्रकार विद्यार्थी जन स्नातक हो जावें, तब वे (राये) ज्ञान-प्रदान और धनोपार्जन के लिये अगला कदम उठावें, स्वयं विद्या-निष्णांत होकर अन्यों को ज्ञान प्रदान करें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ६, ८ निचृद् गायत्री। ३, ५, ७, ९ गायत्री। ४ भुरिग्गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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