ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 24/ मन्त्र 7
ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
शुचि॑: पाव॒क उ॑च्यते॒ सोम॑: सु॒तस्य॒ मध्व॑: । दे॒वा॒वीर॑घशंस॒हा ॥
स्वर सहित पद पाठशुचिः॑ । पा॒व॒कः । उ॒च्य॒ते॒ । सोमः॑ । सु॒तस्य॑ । मध्वः॑ । दे॒व॒ऽअ॒वीः । अ॒घ॒शं॒स॒ऽहा ॥
स्वर रहित मन्त्र
शुचि: पावक उच्यते सोम: सुतस्य मध्व: । देवावीरघशंसहा ॥
स्वर रहित पद पाठशुचिः । पावकः । उच्यते । सोमः । सुतस्य । मध्वः । देवऽअवीः । अघशंसऽहा ॥ ९.२४.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 24; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 7
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 7
विषय - परमपावन, परम रक्षक प्रभु। सूक्त में एक सोम प्रभु और अनेक सोम जीवों का वर्णन ।
भावार्थ -
(सोमः) सर्व जगत् का सञ्चालक, आत्मा, परमेश्वर भी (सुतस्य) ऐश्वर्ययुक्त (मध्वः) ज्ञान के कारण (शुचिः) शुद्ध (पावकः) परम पावन और (देवावीः) देवों, कामनावान् जीवों का रक्षक और (अघ-शंसहा) पाप शासन करने वाले को दण्ड देने वाला है। इन सूक्तों में एक वचनान्त सोम परमेश्वर वाचक और बहुवचनान्त सोम जीवात्मा वाचक प्रतीत होते हैं। आत्मा शब्द के तुल्य सोम भी उभयत्र समान रूप से प्रयुक्त है। इति चतुर्दशो वर्गः। इति प्रथमोऽनुवाकः॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २ गायत्री। ३, ५, ७ निचृद् गायत्री। ४, ६ विराड् गायत्री ॥ सप्तर्चं सूकम्॥
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