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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 24 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 24/ मन्त्र 6
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑स्व वृत्रहन्तमो॒क्थेभि॑रनु॒माद्य॑: । शुचि॑: पाव॒को अद्भु॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑स्व । वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ । उ॒क्थेभिः॑ । अ॒नु॒ऽमाद्यः॑ । शुचिः॑ । पा॒व॒कः । अद्भु॑तः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवस्व वृत्रहन्तमोक्थेभिरनुमाद्य: । शुचि: पावको अद्भुतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवस्व । वृत्रहन्ऽतम । उक्थेभिः । अनुऽमाद्यः । शुचिः । पावकः । अद्भुतः ॥ ९.२४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 24; मन्त्र » 6
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 14; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    हे (वृत्रहन्तम) समस्त विघ्नों के विनाश करने वाले प्रभो ! तू (उक्थेभिः अनुमाद्यः) उत्तम स्तुति वचनों द्वारा निरन्तर आनन्द ग्रहण करने योग्य है। तू (शुचिः) परम पवित्र और (पावकः) सब को पवित्र करने हारा और (अद्भुतः) आश्चर्य-गुण-कर्म-स्वभाववान् है। तू हमें भी (पवस्व) पवित्र कर, प्राप्त हो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - असितः काश्यपो देवलो वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, २ गायत्री। ३, ५, ७ निचृद् गायत्री। ४, ६ विराड् गायत्री ॥ सप्तर्चं सूकम्॥

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