ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 3/ मन्त्र 2
ए॒ष दे॒वो वि॒पा कृ॒तोऽति॒ ह्वरां॑सि धावति । पव॑मानो॒ अदा॑भ्यः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒षः । दे॒वः । वि॒पा । कृ॒तः । अति॑ । ह्वरां॑सि । धा॒व॒ति॒ । पव॑मानः । अदा॑भ्यः ॥
स्वर रहित मन्त्र
एष देवो विपा कृतोऽति ह्वरांसि धावति । पवमानो अदाभ्यः ॥
स्वर रहित पद पाठएषः । देवः । विपा । कृतः । अति । ह्वरांसि । धावति । पवमानः । अदाभ्यः ॥ ९.३.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 20; मन्त्र » 2
विषय - विजिगीषु राजा सोम।
भावार्थ -
(एषः) यह (देवः) तेजस्वी (पवमानः) राष्ट्र का कण्टक-शोधन करता हुआ, (अदाभ्यः) किसी से हिंसित या पीड़ित न होकर (विपा) विशेष पालक शक्ति से (कृतः) समर्थ होकर (ह्वरांसि) कुटिलाचारी जनों को (अति धावति) पार कर जाता है, उनको जीत कर प्रजा को अपने वश करता है।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - शुनःशेप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ विराड् गायत्री। ३, ५, ७,१० गायत्री। ४, ६, ८, ९ निचृद् गायत्री। दशर्चं सूक्तम्॥
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