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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 34 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 34/ मन्त्र 2
    ऋषिः - त्रितः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    सु॒त इन्द्रा॑य वा॒यवे॒ वरु॑णाय म॒रुद्भ्य॑: । सोमो॑ अर्षति॒ विष्ण॑वे ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒तः । इन्द्रा॑य । वा॒यवे॑ । वरु॑णाय । म॒रुत्ऽभ्यः॑ । सोमः॑ । अ॒र्ष॒ति॒ । विष्ण॑वे ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुत इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भ्य: । सोमो अर्षति विष्णवे ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुतः । इन्द्राय । वायवे । वरुणाय । मरुत्ऽभ्यः । सोमः । अर्षति । विष्णवे ॥ ९.३४.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 34; मन्त्र » 2
    अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 24; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (सुतः) अभिषिक्त (सोमः) शासकवत् उत्पन्न हुआ जीव (इन्द्राय वायवे वरुणाय विष्णवे) परमैश्वर्यवान्, प्राणों के प्राण, सर्वश्रेष्ठ सर्वव्यापक प्रभु को प्राप्त करने के लिये और (मरुद्भ्यः) प्राणों और विद्वानों को वश करने और सेवा करने के लिये (अर्षति) आगे बढ़ता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - त्रित ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २, ४ निचृद गायत्री। ३, ५, ६ गायत्री॥

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