ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 36/ मन्त्र 3
स नो॒ ज्योतीं॑षि पूर्व्य॒ पव॑मान॒ वि रो॑चय । क्रत्वे॒ दक्षा॑य नो हिनु ॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । ज्योतीं॑षि । पू॒र्व्य॒ । पव॑मान । वि । रो॒च॒य॒ । क्रत्वे॑ । दक्षा॑य । नः॒ । हि॒नु॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो ज्योतींषि पूर्व्य पवमान वि रोचय । क्रत्वे दक्षाय नो हिनु ॥
स्वर रहित पद पाठसः । नः । ज्योतींषि । पूर्व्य । पवमान । वि । रोचय । क्रत्वे । दक्षाय । नः । हिनु ॥ ९.३६.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 36; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
विषय - शासक के राष्ट्र के प्रति अनेक कर्त्तव्य।
भावार्थ -
हे (पूर्व्यः) पूर्ण ! सब से प्रथम पूज्य ! हे (पवमान) पवित्र-कारक ! (सः) वह तु (नः) हमें (ज्योतींषि) नाना प्रकाश (वि रोचय) प्रकाशित कर और (नः) हमें (क्रत्वे दक्षाय) ज्ञान और बल सम्पादन के लिये (हिनु) प्रेरित कर।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - प्रभूवसुर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १ पादनिचृद्र गायत्री। २, ६ गायत्री। ३-५ निचृद गायत्री॥
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