ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 39/ मन्त्र 6
स॒मी॒ची॒ना अ॑नूषत॒ हरिं॑ हिन्व॒न्त्यद्रि॑भिः । योना॑वृ॒तस्य॑ सीदत ॥
स्वर सहित पद पाठस॒मी॒ची॒नाः । अ॒नू॒ष॒त॒ । हरि॑म् । हि॒न्व॒न्ति॒ । अद्रि॑ऽभिः । योनौ॑ । ऋ॒तस्य॑ । सी॒द॒त्च ॥
स्वर रहित मन्त्र
समीचीना अनूषत हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः । योनावृतस्य सीदत ॥
स्वर रहित पद पाठसमीचीनाः । अनूषत । हरिम् । हिन्वन्ति । अद्रिऽभिः । योनौ । ऋतस्य । सीदत्च ॥ ९.३९.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 39; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 6
अष्टक » 6; अध्याय » 8; वर्ग » 29; मन्त्र » 6
विषय - समबुद्धि उपासकों के लक्षण।
भावार्थ -
(समीचीनाः) सम भाव को प्राप्त, सर्वत्र समबुद्धि, समदर्शी पुरुष ही (हरिः) उस चित्तहारी भवभय-नाशन प्रभु की (अनूषत) स्तुति करते हैं और वे ही (अद्रिभिः हरिं हिन्वन्ति) शिला खण्डों से ओषधि रस के सूक्ष्म गुण के समान (अद्रिभिः) विद्वानों द्वारा (हिन्वन्ति) उसको बढ़ाते हैं। आप लोग ही (ऋतस्य योनिम् आसीदत) सत्य, न्याय के भवन में विचारार्थ बैठें। इत्येकोनविंशो वर्गः ॥
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - बृहन्मतिर्ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, ४, ६ निचृद् गायत्री। २, ३, ५ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥
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