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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 44 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 44/ मन्त्र 6
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स नो॑ अ॒द्य वसु॑त्तये क्रतु॒विद्गा॑तु॒वित्त॑मः । वाजं॑ जेषि॒ श्रवो॑ बृ॒हत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । नः॒ । अ॒द्य । वसु॑त्तये । क्र॒तु॒ऽवित् । गा॒तु॒वित्ऽत॑मः । वाज॑म् । जे॒षि॒ । श्रवः॑ । बृ॒हत् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स नो अद्य वसुत्तये क्रतुविद्गातुवित्तमः । वाजं जेषि श्रवो बृहत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । नः । अद्य । वसुत्तये । क्रतुऽवित् । गातुवित्ऽतमः । वाजम् । जेषि । श्रवः । बृहत् ॥ ९.४४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 44; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 1; मन्त्र » 6

    भावार्थ -
    (सः) वह तू (क्रतुवित्) कर्म और ज्ञान को प्राप्त करने वाला और स्वयं (गातुवित्-तमः) वाणी, ज्ञान का सब से उत्तम ज्ञाता और मार्ग का उत्तम उपदेष्टा (नः अद्य) हमें आज (बृहत् श्रवः वाजं) बड़ा भारी श्रवणीय ज्ञान, प्रसिद्धि, भोग्य धन (जेषि) जीत कर प्रदान कर। इति प्रथमो वर्गः॥

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - यास्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः-१ निचृद् गायत्री। २-६ गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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