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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 45 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 45/ मन्त्र 1
    ऋषिः - अयास्यः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    स प॑वस्व॒ मदा॑य॒ कं नृ॒चक्षा॑ दे॒ववी॑तये । इन्द॒विन्द्रा॑य पी॒तये॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । प॒व॒स्व॒ । मदा॑य । कम् । नृ॒ऽचक्षा॑ । दे॒वऽवी॑तये । इन्दो॒ इति॑ । इन्द्रा॑य । पी॒तये॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स पवस्व मदाय कं नृचक्षा देववीतये । इन्दविन्द्राय पीतये ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । पवस्व । मदाय । कम् । नृऽचक्षा । देवऽवीतये । इन्दो इति । इन्द्राय । पीतये ॥ ९.४५.१

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 45; मन्त्र » 1
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 2; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन्! हे तेजस्विन् ! (सः) वह तू (नृचक्षाः) सब मनुष्यों का द्रष्टा है। तू (देव- वीतये) ‘देव’ दानशील, विद्वान पुरुषों को प्राप्त करने के लिये और (इन्द्राय पीतये) ऐश्वर्य को प्राप्त करने के लिये और (मदाय) हर्ष-आनन्द प्राप्त करने के लिये, (कं पवस्व) प्रजा पर सुख की वृष्टि कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अयाम्य ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:—–१, ३–५ गायत्री। २ विराड् गायत्री। ६ निचृद् गायत्री॥ षडृचं सूक्तम्॥

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