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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 61/ मन्त्र 2
    ऋषिः - अमहीयुः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पुर॑: स॒द्य इ॒त्थाधि॑ये॒ दिवो॑दासाय॒ शम्ब॑रम् । अध॒ त्यं तु॒र्वशं॒ यदु॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पुरः॑ । स॒द्यः । इ॒थाऽधि॑ये । दिवः॑ऽदासाय । शम्ब॑रम् । अध॑ । त्यम् । तु॒र्वश॑म् । यदु॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पुर: सद्य इत्थाधिये दिवोदासाय शम्बरम् । अध त्यं तुर्वशं यदुम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पुरः । सद्यः । इथाऽधिये । दिवःऽदासाय । शम्बरम् । अध । त्यम् । तुर्वशम् । यदुम् ॥ ९.६१.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 61; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 18; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    (इत्था-धिये) इस प्रकार की सत्य निश्चित बुद्धि और सत्य कर्म वाले (दिवः दासाय) ज्ञानवान् तेजस्वी पुरुष की सेवा करने वाले प्रजा जन के हितार्थ (सद्यः) शीघ्र ही (शम्बरम्) उसकी शान्ति के नाशक (अध) और (त्यं तुर्वशं यदुम्) अहिंसाशील एवं यत्नवान् मनुष्य को (सद्यः) शीघ्र ही वश में ला। और (सद्यः) शीघ्र ही (पुरः) उसकी नगरियों को छिन्न भिन्न कर। (२) इसी प्रकार वह प्रभु सत्य कर्म, सत्य बुद्धि के शान्तिनाशक विघ्न को दूर करके उसके बन्धनों को तोड़े।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अमहीयुर्ऋषिः। पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५, ८, १०, १२, १५, १८, २२–२४, २९, ३० निचृद् गायत्री। २, ३, ६, ७, ९, १३, १४, १६, १७, २०, २१, २६–२८ गायत्री। ११, १९ विराड् गायत्री। २५ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥

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