ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 86/ मन्त्र 1
प्र त॑ आ॒शव॑: पवमान धी॒जवो॒ मदा॑ अर्षन्ति रघु॒जा इ॑व॒ त्मना॑ । दि॒व्याः सु॑प॒र्णा मधु॑मन्त॒ इन्द॑वो म॒दिन्त॑मास॒: परि॒ कोश॑मासते ॥
स्वर सहित पद पाठप्र । ते॒ । आ॒शवः॑ । प॒व॒मा॒न॒ । धी॒ऽजवः॑ । मदाः॑ । अ॒र्ष॒न्ति॒ । र॒घु॒जाःऽइ॑व । त्मना॑ । दि॒व्याः । सु॒ऽप॒र्णाः । मधु॑ऽमन्तः । इन्द॑वः । म॒दिन्ऽत॑मासः । परि॑ । कोश॑म् । आ॒स॒ते॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
प्र त आशव: पवमान धीजवो मदा अर्षन्ति रघुजा इव त्मना । दिव्याः सुपर्णा मधुमन्त इन्दवो मदिन्तमास: परि कोशमासते ॥
स्वर रहित पद पाठप्र । ते । आशवः । पवमान । धीऽजवः । मदाः । अर्षन्ति । रघुजाःऽइव । त्मना । दिव्याः । सुऽपर्णाः । मधुऽमन्तः । इन्दवः । मदिन्ऽतमासः । परि । कोशम् । आसते ॥ ९.८६.१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 86; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 12; मन्त्र » 1
विषय - सोम पवमान। राजा के वीर सरदार के तुल्य परमेश्वर और उपासकों का वर्णन।
भावार्थ -
हे (पवमान) अभिषेचनीय ! हे परम पावन ! (ते) तेरे (आशवः) वेग से जाने वाले, व्यापनशील, (धीजवः) बुद्धि के वेग वाले, धीमान् पुरुष, (मदाः) आनन्द प्रसन्न होकर (रघुजाः इव) वे में प्रसिद्ध अश्वों वा स्वयं वेग उत्पन्न करने वाले यन्त्रों के तुल्य (त्मना प्र अर्षन्ति) आप से आप आगे बढ़ते हैं। वे (दिव्याः) दिव्य तेज से युक्त (सुवर्चाः) उत्तम ज्ञान से युक्त, सुखमय, शुभ ज्ञान मार्ग से जाने वाले, (मधुमन्तः) वेदमय ज्ञानोपदेश से युक्त (इन्दवः) तेजस्वी पुरुष ! (मदिन्तमासः) अति अधिक सुप्रसन्न और अन्यों को भी आनन्दित करने वाले होकर (कोशं परि आसते) भीतर आनन्दमय कोश का आश्रय करके विराजते हैं। जैसे राजा के वीर ऐश्वर्यमय कोश का आश्रय लेकर बैठते हैं वैसे प्रभु के भक्त, उपासक आनन्दमय कोश का आश्रय लेते हैं।
टिप्पणी -
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ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः—१—१० आकृष्टामाषाः। ११–२० सिकता निवावरी। २१–३० पृश्नयोऽजाः। ३१-४० त्रय ऋषिगणाः। ४१—४५ अत्रिः। ४६–४८ गृत्समदः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ६, २१, २६, ३३, ४० जगती। २, ७, ८, ११, १२,१७, २०, २३, ३०, ३१, ३४, ३५, ३६, ३८, ३९, ४२, ४४, ४७ विराड् जगती। ३–५, ९, १०, १३, १६, १८, १९, २२, २५, २७, ३२, ३७, ४१, ४६ निचृज्जगती। १४, १५, २८, २९, ४३, ४८ पादनिचृज्जगती। २४ आर्ची जगती। ४५ आर्ची स्वराड् जगती॥
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