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सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 125
ऋषिः - सुकक्षश्रुतकक्षौ देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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उ꣢꣫द्घेद꣣भि꣢ श्रु꣣ता꣡म꣢घं वृष꣣भं꣡ नर्या꣢꣯पसम् । अ꣡स्ता꣢रमेषि सूर्य ॥१२५॥

स्वर सहित पद पाठ

उ꣢त् । घ꣣ । इ꣢त् । अ꣣भि꣢ । श्रु꣣ता꣡म꣢घम् । श्रु꣣त꣢ । म꣣घम् । वृषभ꣢म् । न꣡र्या꣢꣯पसम् । न꣡र्य꣢꣯ । अ꣣पसम् । अ꣡स्ता꣢꣯रम् । ए꣣षि । सूर्य ॥१२५॥


स्वर रहित मन्त्र

उद्घेदभि श्रुतामघं वृषभं नर्यापसम् । अस्तारमेषि सूर्य ॥१२५॥


स्वर रहित पद पाठ

उत् । घ । इत् । अभि । श्रुतामघम् । श्रुत । मघम् । वृषभम् । नर्यापसम् । नर्य । अपसम् । अस्तारम् । एषि । सूर्य ॥१२५॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 125
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2;
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भावार्थ -

भा० = है ( सूर्य ) = समस्त जगत् को प्रेरणा करने वाले आत्मन् ! तू ( श्रुतामघम् ) = प्रसिद्धि धन ज्ञान और कीर्ति सम्पन्न ( वृषभम् ) = सुख और आनन्द की वर्षा करने वाले, सर्वश्रेष्ठ । ( नर्यावसन् ) = मनुष्यों के हितकारी कार्य करने और मनःसंकल्प करने वाले ( अस्तारम् ) = अपने प्रतिपक्षियों और काम, क्रोध आदि शत्रुओं को मार गिराने वाले, पराक्रमी वीर पुरुष के प्रति ( इद् ह ) = ही तू ( उद् एषि ) = ऊपर उठता है, उदित होता है ।

सदाचारी, परोपकारी काम क्रोधादि के जीतने वाले पुरुषपुंगव का आत्मा सूर्य के समान उन्नति को प्राप्त होता है ।
 

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

ऋषिः - सुकक्षश्रुतकक्षौ।

छन्दः - गायत्री । 

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