Loading...

सामवेद के मन्त्र

सामवेद - मन्त्रसंख्या 127
ऋषिः - भारद्वाजः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
0

य꣡ आन꣢꣯यत्परा꣣व꣢तः꣢ सु꣡नी꣢ती तु꣣र्व꣢शं꣣ य꣡दु꣢म् । इ꣢न्द्रः꣣ स꣢ नो꣣ यु꣢वा꣣ स꣡खा꣢ ॥१२७॥

स्वर सहित पद पाठ

यः꣢ । आ꣡न꣢꣯यत् । आ꣣ । अ꣡न꣢꣯यत् । प꣣राव꣡तः꣢ । सु꣡नी꣢꣯ती । सु । नी꣣ति । तुर्व꣡श꣢म् । य꣡दु꣢꣯म् । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । सः । नः꣣ । यु꣡वा꣢꣯ । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ ॥१२७॥


स्वर रहित मन्त्र

य आनयत्परावतः सुनीती तुर्वशं यदुम् । इन्द्रः स नो युवा सखा ॥१२७॥


स्वर रहित पद पाठ

यः । आनयत् । आ । अनयत् । परावतः । सुनीती । सु । नीति । तुर्वशम् । यदुम् । इन्द्रः । सः । नः । युवा । सखा । स । खा ॥१२७॥

सामवेद - मन्त्र संख्या : 127
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2;
Acknowledgment

भावार्थ -

भा० = ( यः ) = जो ( इन्द्रः ) = ऐश्वर्यवान् पुरुष ( सुनीती ) = उत्तम नीति, उपाय साधन द्वारा ( तुर्वशं  ) = कामनाओं से बंधे और ( यदुं ) = कुपथ में गये पुरुष को ( परावतः ) = बहुत दूर से भी ( अनयत् ) = सन्मार्ग पर लेआता है ( सः ) = वह ( नः ) = हमारा ( युवा ) = सदा जवान, अजर, अमर, नित्य ( सखा ) = इष्ट मित्र और समान ख्याति वाला, हमारे आत्मा या हृदय देश में विराजमान परमात्मा या आचार्य है। यहां इन्द्र आत्मा, परमात्मा, आचार्य तीनों पर समान भाव से लगता है ।

'तुर्वशं'- तुर्वी  हिंसायाम् । भ्वादिः । कलेरशच् ।  हिंसन्ति आहिंस्यन्ते  ब्याध्यादिभिर्वा । यद्वा तूर त्वरणहिंसमयो: । दिवादिः । यद्वा तुर्वशः काम 
एषामिति तुर्वशा: । यद्वा चतुर्षु धर्मार्थकाममोक्षेषु वश एषामिति चतुर्वशाः सन्तः, चकारलोपेन तुर्वशाः । दे० य० । तुर्वश इति मनुष्यनाम | नि० २ | ३ ॥

'यदुम्' – यदुः, यमेर्दुक् इति भोजः । यम्यते नियम्यते आचार्येण अपथप्रवृत्ताराज्ञा वा । यदुरिति मनुष्यनाम । नि० २ । ३ ॥ 

तुर्वश, द्रुड्यु, अनु, यदु, और पुरु ये ऐतिहासिक पुरुष भी हुए हैं। सायण ने इतिहासपरक ही अर्थ किया है । परन्तु वेद में ये सव मनुष्य के पर्याय शब्द हैं। धात्वर्थी के भेद से भिन्न २ गुण के मनुष्यों के ये वाचक हैं ।  जैस-(१) ‘तुर्वी हिंसायां' धातु से अशच् प्रत्यय करने से तुवंश शब्द बनता है। जो प्राणियों को मारें या व्याधि से पीड़ित हों । (२) तुर्वश= जिन को काम अर्थात् एषणा  हो वे तुर्वश कहाते हैं। या (३) जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों को अपने वश करलें वे 'तुर्वश' कहाते हैं। उसी प्रकार 'यदु' वे मनुष्य हैं जो कुमार्ग पर पैर धरने पर राजा व आचार्य द्वारा नियम व्यवस्था में लाये जावें । आर्यसाहित्य में देव को इष्ट, बन्धु कहा जाता हैं और आचार्य को भी सुहृत् माना गया है। सुहृद् भूत्वा आचार्य उपदिशति' ( पातं० महाभाष्य ) । 

ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -

 

ऋषिः - भारद्वाजः।

छन्दः - गायत्री। 

इस भाष्य को एडिट करें
Top