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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 130
ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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इ꣡न्द्रं꣢ व꣣यं꣡ म꣢हाध꣣न꣢꣫ इन्द्र꣣म꣡र्भे꣢ हवामहे । यु꣡जं꣢ वृ꣣त्रे꣡षु꣢ व꣣ज्रि꣡ण꣢म् ॥१३०॥
स्वर सहित पद पाठइ꣡न्द्र꣢꣯म् । व꣣य꣢म् । म꣣हाधने꣣ । महा । धने꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् अ꣡र्भे꣢꣯ । ह꣣वामहे । यु꣡ज꣢꣯म् । वृ꣣त्रे꣡षु꣢ । व꣣ज्रि꣡ण꣢म् ॥१३०॥
स्वर रहित मन्त्र
इन्द्रं वयं महाधन इन्द्रमर्भे हवामहे । युजं वृत्रेषु वज्रिणम् ॥१३०॥
स्वर रहित पद पाठ
इन्द्रम् । वयम् । महाधने । महा । धने । इन्द्रम् अर्भे । हवामहे । युजम् । वृत्रेषु । वज्रिणम् ॥१३०॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 130
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 4; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 2;
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विषय - परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ -
भा० = ( महाधने१ ) = बड़े २ संग्राम के अवसर में और ( अर्भे ) = छोटे मोटे परस्पर के कलह या चोरी आदि के अवसर पर भी ( वयं ) = हम लोग ( वृत्रेषु ) = विघ्न और उपद्रवों और विघ्नकारियों पर ( वज्रिणं ) = सदा तलवार या सेना-बल को या दण्ड को धारण करने हारे, ( युजं ) = सदा सहायक, ( इन्द्रम् ) = राजा को ( वयं ) = हम ( हवामहे ) = बुलाते हैं उसके गुण कीर्त्तन करते हैं। यहां इन्द्र शब्द राजा वाचक है। राजा के दृष्टान्त से उपनिषदों में मुख्य प्राण और आत्मा का वर्णन किया गया है । आत्मा पक्ष में ( महाधने ) = बड़े भारी योगसाधन और ( अर्भे ) = सूक्ष्म विचार में भी ( वृत्राणि ) = आत्मा पर पर्दा डालने वाली तामस व्युत्थान वृत्तियों पर ( वज्रिणम् ) = सूक्ष्मगति या वर्जक शक्ति अर्थात् असत् को छोड़कर सत् को ग्रहण करने वाले विवेक से युक्त आत्मा का स्मरण करें। जैसे काठक में "यदिदं किन्च जगत्सर्वं प्राण एजति निः सृतम् । महद्भयं वज्रमुद्यतम् ।" कठ० वल्ली २ ॥
टिप्पणी -
१ .महाधनमिति संग्रामनाम ( नि० ३।१८ । ) । अर्भो हरतेः ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
ऋषिः - मधुच्छन्दा ।
छन्दः - गायत्री।
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