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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 145
ऋषिः - श्रुतकक्षः आङ्गिरसः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣡पा꣢दु शि꣣प्र्य꣡न्ध꣢सः सु꣣द꣡क्ष꣢स्य प्रहो꣣षि꣡णः꣢ । इ꣢न्द्रो꣣रि꣢न्द्रो꣣ य꣡वा꣢शिरः ॥१४५॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡पा꣢꣯त् । उ꣣ । शिप्री꣢ । अ꣡न्ध꣢꣯सः । सु꣣द꣡क्ष꣢स्य । सु꣣ । द꣡क्ष꣢꣯स्य । प्र꣣होषि꣡णः꣢ । प्र꣣ । होषि꣡णः꣢ । इ꣢न्दोः꣢꣯ । इन्द्रः꣢꣯ । य꣡वा꣢꣯शिरः । य꣡व꣢꣯ । आ꣣शिरः ॥१४५॥
स्वर रहित मन्त्र
अपादु शिप्र्यन्धसः सुदक्षस्य प्रहोषिणः । इन्द्रोरिन्द्रो यवाशिरः ॥१४५॥
स्वर रहित पद पाठ
अपात् । उ । शिप्री । अन्धसः । सुदक्षस्य । सु । दक्षस्य । प्रहोषिणः । प्र । होषिणः । इन्दोः । इन्द्रः । यवाशिरः । यव । आशिरः ॥१४५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 145
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 4;
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विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = ( शिप्री ) = एक शरीर से दूसरे शरीर में जाने वाला या प्राणों का स्वामी ( इन्द्रः ) = ऐश्वर्यशील आत्मा ( सुदक्षस्य ) = कार्यसम्पादन में कुशल, बलसम्पन्न, ( प्रहोषिण: ) = उत्तम रीति से हवन, दान-आदान करने वाले ( इन्द्रो: ) = प्रदीप्त , ( यवाशिरः ) = अन्न के सारभूत अंश से मिल कर परिपक्व ( अन्धसः ) = प्राणधारण सामर्थ्य को ( अपात् ) = पान या पालन करता है ।
‘प्रहोषिन्’—इसकी व्याख्या देखिये ( गीता अ० ४ । २३-३१ ।)। इसमें बहुत से यज्ञ दर्शाये हैं जैसे १. ब्रह्मार्पण ब्रह्महवियाग । २. इन्द्रियों की संयम में आहुति । ३. शब्दादि ग्राह्य विषयों की इन्द्रियों में आहुति, ४. ज्ञानेन्द्रिय ओर ५. प्राणेन्द्रिय कर्मों की संयमाग्नि में आहुति, ६. द्रव्ययज्ञ, ७. तपोयज्ञ ८. योगयज्ञ, ९ .स्वाध्याय यज्ञ. १०.ज्ञानयज्ञ, ११. अपान में प्राण की आहुति १२. प्राण में अपान की आहुति, १३ प्राणों की प्राणों में आहुति इत्यादि । इनके कर्त्ता सभी 'प्रहोषी' है। इनमें सबसे श्रेष्ठ सुदक्ष ज्ञानी वह है जो अपने ज्ञानाग्नि अर्थात् चेतना शक्ति में सब कर्म-शक्ति अर्थात् अन्न की जविन शक्ति को एक करके कर्मबन्धन से मुक्त हो जाता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
ऋषिः - श्रुतकक्षः सुकक्षो।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
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