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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 515
ऋषिः - सप्तर्षयः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
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सो꣡म꣢ उ ष्वा꣣णः꣢ सो꣣तृ꣢भि꣣र꣢धि꣣ ष्णु꣢भि꣣र꣡वी꣢नाम् । अ꣡श्व꣢येव ह꣣रि꣡ता꣢ याति꣣ धा꣡र꣢या म꣣न्द्र꣡या꣢ याति꣣ धा꣡र꣢या ॥५१५॥
स्वर सहित पद पाठसो꣡मः꣢꣯ । उ꣣ । स्वानः꣢ । सो꣣तृ꣡भिः꣢ । अ꣡धि꣢꣯ । स्नु꣡भिः꣢꣯ । अ꣡वी꣢꣯नाम् । अ꣡श्व꣢꣯या । इ꣣व꣢ । हरि꣡ता꣢ । या꣣ति । धा꣡र꣢꣯या । म꣣न्द्र꣡या꣢ । या꣣ति । धा꣡र꣢꣯या ॥५१५॥
स्वर रहित मन्त्र
सोम उ ष्वाणः सोतृभिरधि ष्णुभिरवीनाम् । अश्वयेव हरिता याति धारया मन्द्रया याति धारया ॥५१५॥
स्वर रहित पद पाठ
सोमः । उ । स्वानः । सोतृभिः । अधि । स्नुभिः । अवीनाम् । अश्वया । इव । हरिता । याति । धारया । मन्द्रया । याति । धारया ॥५१५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 515
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 3; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 5;
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विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = हे ( सोम ) = आत्मन् ! ( सोतृभिः ) = सवन करनेहारे साधकों द्वारा ( अवीनां ) = इन्द्रियों के ( अधिष्णुभिः ) = मार्गों से ( स्वान: उ ) = सवन किया जाता हुआ ( हरितया ) = गतिशील ( अश्वया ) = व्यापक चेतना से ( मन्द्रया ) = आनन्दजनक ( धारा ) = प्रवाह के रूप में ( याति ) = हृदय में प्रकट होता है और ( मन्द्रया धारया याति ) = उत्तम अश्व के समान आनन्दजनक धारा के रूप में प्रकट होता है अर्थात्, जैसे राजा तेज़ घोड़ी पर दुड़की चाल से चलकर नगर में सर्वत्र जाता है उसी प्रकार ( सोम ) = आत्मानन्द भी मन्द्राधारा से हृदय में प्रकट होता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर -
ऋषिः - भरद्वाजः काश्यपो गोतमोऽत्रिर्विश्वामित्रो जमदग्निर्वसिष्ठश्चैते सप्तर्षयः ।
देवता - पवमानः ।
छन्दः - बृहती।
स्वरः - मध्यमः।
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