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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 747
ऋषिः - नारदः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - उष्णिक्
स्वरः - ऋषभः
काण्ड नाम -
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स꣡ प्र꣢थ꣣मे꣡ व्यो꣢मनि दे꣣वा꣢ना꣣ꣳ स꣡द꣢ने वृ꣣धः꣢ । सु꣣पारः꣢ सु꣣श्र꣡व꣢स्तमः꣣ स꣡म꣢प्सु꣣जि꣢त् ॥७४७॥
स्वर सहित पद पाठसः । प्र꣣थमे꣢ । व्यो꣡म꣢नि । वि । ओ꣣मनि । दे꣣वा꣡ना꣢म् । स꣡द꣢꣯ने । वृ꣢धः꣡ । सु꣣पा꣢रः । सु꣣ । पारः꣡ । सु꣣श्र꣡व꣢स्तमः । सु꣣ । श्र꣡व꣢꣯स्तमः । सम् । अ꣣प्सुजि꣣त् । अ꣣प्सु । जि꣢त् ॥७४७॥
स्वर रहित मन्त्र
स प्रथमे व्योमनि देवानाꣳ सदने वृधः । सुपारः सुश्रवस्तमः समप्सुजित् ॥७४७॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । प्रथमे । व्योमनि । वि । ओमनि । देवानाम् । सदने । वृधः । सुपारः । सु । पारः । सुश्रवस्तमः । सु । श्रवस्तमः । सम् । अप्सुजित् । अप्सु । जित् ॥७४७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 747
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 12; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 3; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
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विषय - "Missing"
भावार्थ -
भा० = ( २ ) ( सः ) = वह परमेश्वर ( प्रथमे ) = सबसे श्रेष्ठ ( व्योमनि ) = विशेष रूप से शरण प्राप्त करने योग्य ( देवानां सदने ) = विद्वान् ज्ञानी और मुक्त पुरुषों के आश्रय या निवास करने योग्य लोक में ( वृधः ) = सबसे बड़ा है। वह ( सुपार: ) = उत्तम रूप से ज्ञान करने योग्य और कष्टों से तराने वाला ( सुश्रवस्तमः ) = उत्तम यश और ज्ञान का धारण करनेहारा, ( समप्सुजित् ) = समस्त कर्मबन्धनों या बन्धनों में फंसे जीवों में सबसे उत्कृष्ट एवं आदि मूल कारण प्रकृति पर भी वश करने वाला है।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - ऋषिः - नारद:। देवता - इन्द्र:। छन्द: - उष्णिक् । स्वरः - ऋषभ:।
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