Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 15 > सूक्त 10

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 15/ सूक्त 10/ मन्त्र 8
    सूक्त - अध्यात्म अथवा व्रात्य देवता - द्विपदासुरी गायत्री छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - अध्यात्म प्रकरण सूक्त

    ऐनं॒ ब्रह्म॑गच्छति ब्रह्मवर्च॒सी भ॑वति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ । ए॒न॒म् । ब्रह्म॑ । ग॒च्छ॒ति॒ । ब्र॒ह्म॒ऽव॒र्च॒सी । भ॒व॒ति॒ ॥१०.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ऐनं ब्रह्मगच्छति ब्रह्मवर्चसी भवति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आ । एनम् । ब्रह्म । गच्छति । ब्रह्मऽवर्चसी । भवति ॥१०.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 15; सूक्त » 10; मन्त्र » 8

    भावार्थ -
    (यः) जो (पृथिवीम् बृहस्पतिम्) पृथिवी को बृहस्पति और (अग्निम् ब्रह्म) अग्नि को ब्रह्म (वेद) जान लेता है (एनं) उसको (ब्रह्म आगच्छति) ब्रह्मबल प्राप्त होता है (ब्रह्मवर्चसी भवति) वह ब्रह्मवर्चस्वी हो जाता है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - १ द्विपदासाम्नी बृहती, २ त्रिपदा आर्ची पंक्तिः, ३ द्विपदा प्राजापत्या पंक्तिः, ४ त्रिपदा वर्धमाना गायत्री, ५ त्रिपदा साम्नी बृहती, ६, ८, १० द्विपदा आसुरी गायत्री, ७, ९ साम्नी उष्णिक्, ११ आसुरी बृहती। एकादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top