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अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 37/ मन्त्र 1
सूक्त - अथर्वा
देवता - अग्निः
छन्दः - त्रिष्टुप्
सूक्तम् - बलप्राप्ति सूक्त
इ॒दं वर्चो॑ अ॒ग्निना॑ द॒त्तमाग॒न्भर्गो॒ यशः॒ सह॒ ओजो॒ वयो॒ बल॑म्। त्रय॑स्त्रिंश॒द्यानि॑ च वी॒र्याणि॒ तान्य॒ग्निः प्र द॑दातु मे ॥
स्वर सहित पद पाठइ॒दम्। वर्चः॑। अ॒ग्निना॑। द॒त्तम्। आ। अ॒ग॒न्। भर्गः॑। यशः॑। सहः॑। ओजः॑। वयः॑। बल॑म्। त्रयः॑ऽत्रिंशत्। यानि॑। च॒। वी॒र्या᳡णि। तानि॑। अ॒ग्निः। प्र। द॒दा॒तु॒। मे॒ ॥३७.१॥
स्वर रहित मन्त्र
इदं वर्चो अग्निना दत्तमागन्भर्गो यशः सह ओजो वयो बलम्। त्रयस्त्रिंशद्यानि च वीर्याणि तान्यग्निः प्र ददातु मे ॥
स्वर रहित पद पाठइदम्। वर्चः। अग्निना। दत्तम्। आ। अगन्। भर्गः। यशः। सहः। ओजः। वयः। बलम्। त्रयःऽत्रिंशत्। यानि। च। वीर्याणि। तानि। अग्निः। प्र। ददातु। मे ॥३७.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 37; मन्त्र » 1
विषय - वीर्य, बल की प्राप्ति।
भावार्थ -
(इदं) यह (वर्चः) तेज जो (अग्निना) अग्नि ने (दत्तम्) प्रदान किया है वह मुझे (भर्गः) तेज, (यशः) यश, (सहः) शत्रुधर्षक बल, (ओजः) ओज, (वयः) दीर्घ आयु और (बलम्) बल रूप में (आ अगन्) प्राप्त हो। (यानि) जो (त्रयः त्रिंशत् वीर्याणि) तेंतीस वीर्य, अधिकार हैं (तानि) उन सबको वह (अग्निः) अग्नि, परमेश्वर, राजा, आचार्य और विद्युत् (मे प्रददातु) मुझे प्रदान करे।
टिप्पणी -
(प्र०) ‘आगात्’ तै० ब्रा०। ‘इदं राधो’ इति आ० श्रौ० सू०। ‘यशो भर्गः सह ओजो बलं च’ इति ते० ब्रा०। महि राधः सह ओजो बलं यत्। मै० स०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। अग्निर्देवता। १ त्रिष्टुप्। २ आस्तारपंक्तिः। ३ त्रिपदा महाबृहती। ४ पुरोष्णिक्। चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
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