अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 6/ मन्त्र 4
सूक्त - नारायणः
देवता - पुरुषः
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - जगद्बीजपुरुष सूक्त
पुरु॑ष ए॒वेदं सर्वं॒ यद्भू॒तं यच्च॑ भा॒व्यम्। उ॒तामृ॑त॒त्वस्ये॑श्व॒रो यद॒न्येनाभ॑वत्स॒ह ॥
स्वर सहित पद पाठपुरु॑षः। ए॒व। इ॒दम्। सर्व॑म्। यत्। भू॒तम्। यत्। च॒। भा॒व्य᳡म्। उ॒त। अ॒मृ॒त॒ऽत्वस्य॑। ई॒श्व॒रः। यत्। अ॒न्येन॑। अभ॑वत्। स॒ह ॥६.४॥
स्वर रहित मन्त्र
पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भाव्यम्। उतामृतत्वस्येश्वरो यदन्येनाभवत्सह ॥
स्वर रहित पद पाठपुरुषः। एव। इदम्। सर्वम्। यत्। भूतम्। यत्। च। भाव्यम्। उत। अमृतऽत्वस्य। ईश्वरः। यत्। अन्येन। अभवत्। सह ॥६.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 6; मन्त्र » 4
विषय - महान् पुरुष का वर्णन।
भावार्थ -
(इदं सर्वं) यह सब कुछ (यत् भूतम्) जो उत्पन्न हुआ और (यत् च) जो (भाव्यम्) उत्पन्न होने वाला है और (यत्) जो (अन्येन) अन्यरूप से, ब्रह्म या चेतन रूप के अतिरिक्त जड़ प्रकृति के (सह अभवत्) साथ रहता है (उत) और जो स्वयं (अमृतत्वस्य) अमृत स्वरूप, अमृत का सत्ताका (ईश्वरः) स्वामी है वह (पुरुष एव) परम पूर्ण, सर्वव्यापक परमात्मा ही है। परमेश्वर ही जगत् का उत्पादक वही, प्रकृति के साथ अनादि रूप से वर्त्तमान, और यह परम अमृत मोक्ष का ईश्वर है। ‘यद् अन्नेनाभवत् सह’ इस पाठ के अनुसार वह ईश्वर ही है जो (अन्नेन सह) अन्न, समस्त जीवों के प्राणप्रद अन्नादि पदार्थों के साथ जीवनशक्ति देने वाले के रूप में विद्यमान है।
टिप्पणी -
(तृ० च०) उतामृत त्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति। इति ऋ० यजु०।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - पुरुषसूक्तम्। नारायण ऋषिः। पुरुषो देवता। अनुष्टुभः। षोडशर्चं सूक्तम्।
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