Loading...
अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 101

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 101/ मन्त्र 1
    सूक्त - मेध्यातिथिः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-१०१

    अ॒ग्निं दू॒तं वृ॑णीमहे॒ होता॑रं वि॒श्ववे॑दसम्। अ॒स्य य॒ज्ञस्य॑ सु॒क्रतु॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒ग्निम् । दू॒तम् । वृणी॒म॒हे॒ । होता॑रम् । वि॒श्वऽवे॑दसम् ॥ अ॒स्य । य॒ज्ञस्य॑ । सु॒क्रतु॑म् ॥१०१.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अग्निं दूतं वृणीमहे होतारं विश्ववेदसम्। अस्य यज्ञस्य सुक्रतुम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अग्निम् । दूतम् । वृणीमहे । होतारम् । विश्वऽवेदसम् ॥ अस्य । यज्ञस्य । सुक्रतुम् ॥१०१.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 101; मन्त्र » 1

    भावार्थ -
    हम लोग (अग्निम्) ज्ञानवान् अग्रणी, (विश्ववेदसम्) समस्त ऐश्वर्यों से युक्त, सब विद्याओं में पारंगत, (होतारं) सब सुखी और ज्ञानों के दाता (यज्ञस्य) यज्ञ राष्ट्र के (सुक्रतुम्) उत्तम रीति से करने वाले पुरुष को (दूतम्) दूत या प्रतिनिधि रूप से (वृणीमहे) नियुक्त करते हैं। इसी प्रकार ज्ञानी, ऐश्वर्यवान् उत्तम यज्ञकर्ता को होता, अग्रणी नायक बनाना चाहिये, यह भी स्पष्ट है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मेधातिथिर्ऋषिः। अग्निर्देवता। गायत्र्यः। तृचं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top