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अथर्ववेद > काण्ड 7 > सूक्त 38

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  • अथर्ववेद - काण्ड 7/ सूक्त 38/ मन्त्र 3
    सूक्त - अथर्वा देवता - आसुरी वनस्पतिः छन्दः - चतुष्पदोष्णिक् सूक्तम् - केवलपति सूक्त

    प्र॒तीची॒ सोम॑मसि प्र॒तीच्यु॒त सूर्य॑म्। प्र॒तीची॒ विश्वा॑न्दे॒वान्तां त्वा॒च्छाव॑दामसि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र॒तीची॑ । सोम॑म् । अ॒सि॒ । प्र॒तीची॑ । उ॒त । सूर्य॑म् । प्र॒तीची॑ । विश्वा॑न् । दे॒वान् । ताम् । त्वा॒ । अ॒च्छ॒ऽआव॑दामसि ॥३९.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्रतीची सोममसि प्रतीच्युत सूर्यम्। प्रतीची विश्वान्देवान्तां त्वाच्छावदामसि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्रतीची । सोमम् । असि । प्रतीची । उत । सूर्यम् । प्रतीची । विश्वान् । देवान् । ताम् । त्वा । अच्छऽआवदामसि ॥३९.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 7; सूक्त » 38; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    पुरुष कन्या के प्रति कहता है। (सोमं प्रतीची असि) तू सौम्यगुण युक्त पुरुष के प्रति पत्नीभाव से आई है, (सूर्यम् प्रतीची) तू सूर्य = विद्वान्, या उत्तम सन्तानोत्पन्न करने में समर्थ पुरुष के प्रति आई है। और (विद्वान् प्रतीची) तू समस्त देवों विद्वानों के समक्ष आई है। (तां) ऐसी उत्तम चरित्रवती (त्वाम्) तुझको हम (अच्छ वदामः) उत्तम कहते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अथर्वा ऋषिः। वनस्पतिर्देवता। १, २, ४, ५ अनुष्टुप्। ३ चतुष्पादुष्णिक्। पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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